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गाब्धिपारीणान् व्यानसंस्थान् शिवप्रदान । ननम्ये मामके चित्त भृशं भृशितमन्मथान् । ६। गुरसामर्थ्यसंतप्ततपसा व्योमगा. मिनः । गुरुन् गाम्भीर्यधैर्यादिवातिश्च विधि.18मलाइ महाविदा झा रामयशोधरन् । प्रात्रीभवन् यके नौमि शामिनरसिंहकाच तान् । ८ । चिकापुरहमस्येव पुराणं वैमल ध्रुव । यथा पूर्वमहामार्जिनसेनादिसूरिभिः। ६ । वेदं क्व मे जिसका उदय हुआ है ।। ५ ॥ जो महानुभाव आचारांग आदि बारह अंगोंके पारगामी हैं। ध्यानमें लीन हैं। मोक्षमार्ग प्रदान करने वाले हैं और समस्त संसारको अपने वशमें करनेवाले | दुष्ट कामदेवके जीतनेवाले हैं उनकी भी मैं अपने चित्तमें पूर्ण भक्ति रखता हूँ॥६॥ में विद्याधरोंके समान गुरुओंको भी नमस्कार करता हूँ क्योंकि जिसप्रकार विद्याधरगण आकाशमें गमन करनेवाले हैं उसीप्रकार गुरुगण भी विशिष्ट सामर्थ्यसे तपे गये तपके द्वारा आकाशगामिनो ऋद्धिको प्राप्तिसे आकाशमें गमन करनेवाले होते हैं । जिसप्रकार विद्याधरगण गंभीरता धीरता आदि गुणोंके धारक होते हैं उसप्रकार गुरुगण भी गंभीरता धीरता आदि गुणोंकी खान होते हैं । जिस प्रकार विद्याधरगण 'चित्विषः, । चित-विद्याओंसे देदीप्यमान रहते हैं। उसप्रकार गुरुगण भी ज्ञान आदि गुणोंसे जाज्वल्यमान रहते हैं। जिसप्रकार विद्याधरगण रामसेनान' सीताहरणके समय रावणसे युद्ध के समय रामचन्द्रकी सेनाखरूप हुए थे उसोप्रकार 'रमंते योगिनोऽस्मिन्निति रामः' अर्थात् जिनके ध्यानमें मुनिगम आनन्दका आस्वादन कर वेराम-सिद्धयरमेष्ठी कहे जाते हैं । उन | सिद्ध परमेष्ठीकी निम्रन्थ गुरुगण सेनास्वरूप हैं क्योंकि मुख्यरूपसे सिद्धपरमेष्ठीकोही उन्होंने अपना I/ पूर्णस्वामी समझ रक्खा है । जिसप्रकार विद्याधरगण महाविद्यान' अनेक महाविद्याओंके धारक या होते हैं उसीप्रकार गुरुगण भी महाज्ञानके धारक हैं । जिसप्रकार विद्याधरगण कीा रामयशोध-स
रान्' कोर्तिके साथ रामचन्द्र के यशको सहन करने वाले थे अर्थात् समान जातीय और अपना स्वामी होने पर भी वे रावणके विजय होनेपर उसकी कीर्तिसे अपनी कीर्ति नहीं समझते थे क्योंकि उसने परस्त्रोहरणरूप पातक किया था किन्तु वे रामचन्द्र के विजय करनेपर जो उनकी कीर्ति संसार में फैली
प्रयकरार
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