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शेषांस्तार्थकतो नोमि सादरं ज्ञानभास्करान् । कार्मारातीन् समुन्मूल्य शिवसाम्राज्यभूमिपान् ॥ २॥ विमलं विमलं स्वोमि विमलझानशालिनं । दुर्योधरजसाकीर्णभूतले पारिदायितं ॥ ३ ॥ परमेष्ठिगुणस्सिौमि पंचपकनिरासकान् । सज्ज्ञानादिगुण प्रातशक्तिजाभरणायितान् ॥ ४॥ भारती भाभरा भूत्यै स्वर्णामा विश्वमातरं ! मरालयाइनं चाये वृषभशास्यनिर्गतां ॥५॥ द्वादशांA जो आदीश्वर भगवान सर्वेश---संसारवती समस्त जीवों के स्वामी है। शंकर- समस्त संसारका
कल्याण करनेवाले हैं। सिद्ध --ज्ञानावरण आदि समस्त कर्मोंसे रहित सिद्ध परमात्मा हैं। प्रजापति युगकी आदिमें असि मषि कृषि आदिकी सृष्टिका विधान बतलाने के कारण ब्रह्मा स्वरूप हैं एवं
जिनकी स्तुति बड़े बड़े देवोंके इंद्र भी करते हैं उन जिनेंद्र भगवान आदिनाथको मैं (ग्रंथकार) 18 इस यथकी आदिमें मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ॥ १॥ भगवान आदिनाथके सिवाय 12| अजितनाथ आदि अन्य तीर्थंकरोंको भी में सादर नमस्कार करता है जो कि ज्ञानके सूर्यस्वरूप II हैं एवं कर्मरूपी वैरियोंका सर्वथा नाशकर मोक्षरूपी साम्राज्यके स्वामी है ॥ २ ॥ तरहा तीर्थकर
भगवान विमलनाथको भी मैं नमस्कार करता है जो विमलनाथभगवानसमस्त कमरूपी मलोंसे - रहित होनेके कारण विमल हैं। विमल ज्ञान- केवलज्ञानसे शोभायमान हैं एवं जिसप्रकार धूलिसे
व्यात पृथ्वीतलको मेघ शांत कर देता है उसीप्रकार मिथ्याज्ञानसे परिपूर्ण समस्त जगतको शांति प्रदान करते हैं-समस्त जगतके मिथ्याज्ञानको नष्ट करनेवाले हैं ॥३॥ अहंत सिद्ध आचार्य आदि पांचों परमेष्ठियोंके गुणोंकी भी में स्तुति करता हैं क्योंकि ये पांचों परमेष्ठियोंके गुण अहिंसा 2] आदि पांचों पापोंके नाश करनेवाले हैं एवं सम्यग्ज्ञान आदि गुण स्वरूपमुक्तामयी भषण हैं अर्थात्
जिसप्रकार सुंदर मोतियोंके बने भूषण शरीरकी शोभा बढ़ानेवाले होते हैं उसीप्रकार परमेटियोंके Kगुण भी आत्माको आदर्श बनानेवाले भूषण हैं ॥ ४॥ मैं उस सरस्वती देवीको भी अपने कल्याण
की इच्छासे नमस्कार करता हु जो कि महा मनोज्ञ शोभासे परिपूर्ण है ।सुवर्ण के समान कांतिकी धारक है। समस्त जगतकी माता है । इसकी जिसकी सवारी है और भगवान ऋषभदेवके मुखसे
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