SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खिलान् देशान् सुर्ख राज्यं भुनक्ति सः।। १६४॥ अथकदा सभामध्ये समागत्यकखेचरनाम्नाऽऽकाशगतिनत्वा राजानं च व्यजि-! विमलापत् ॥ १९५॥ हे राजन् विजयाल्य दक्षिण णिका मता। तत्रैव केरला पूध तत्र राजा मृगांककः ॥ १६ ॥ तस्य राजी गुणागार मदगिनी मालतीलक्षा। पिलासवतिका पुत्रो रूपरभा सयौवना ॥ १७॥ मृगांकोऽपि तथाभूतां सुतां दृष्ट्वा पप्रच्छ सः। मुनि सुमतिनामानमत्याः को भषिता. पति: ॥ १९८ ॥ श्रीणिकोऽस्या भवो राजन् ! भविता भूरिधिकमः । शुत्वैवं निश्चयं कृत्वा स्थितः श्रीकेरलापतिः ॥ १६॥ तदा मरालोपस्य रहनचूड़ो नराधिपः । इप्ट्वा तां रतिमा भूरिसवर्णी याचते रूम सः॥ २०॥ नो हौ तस्मकै राजा रत्नचूड़ाख्यापतिः । तदागत्य पुरं क्रोधाद्वेष्टयित्वा स्थितो हि सः ॥२०१॥ तवाम्यणे समायातोऽहं कथनाय वेगत: 1 राजधानी राजगृह नगरमें प्रविष्ट हो गये ॥ १६३ ॥ राजलक्षणोंसे मंडित महाराज श्रेणिकने राजसिंहासन अलंकृत किया एवं समस्त देशोंको जीतकर वे सुखपूर्वक राज्य भोगने लगे ॥ १९४॥ महाराज शेशिक पाकद सिंहासन पर विराजमान थे कि उससमय एक आकाशगति नामका / विद्याधर राजसभामें आया और राजाको नमस्कार कर यह संदेशा कहने लगा—विजयाध पर्वत, | की दक्षिण श्रेणिमें एक केरला नामकी नगरी है। उसका स्वामी राजा मृगांक है । राजा मृगांककी पटरानीका नाम मालतीलता है जो कि अनेक गुणोंकी मंदिर है और नातेमें मेरी भगिनो लगतो है एवं उन दोनोंके विलासवती नामकी अत्यंत सुन्दरी और यौवनसे मंडित पुत्री है ॥१६५-१६७|| विवाह योग्य अपनी युवति पुत्रीको देखकर राजो मृगांकने सुमति नामके मुनिराजसे पूछा था कि | भगवन् ! मेरी पुत्रीका पति कौन होगा ? उत्तरमें मुनिराजने कहा था कि राजगृह नगरके स्वामी । | राजा श्रेणिक इसके पति होंगे जो कि संसारमें एक प्रवल पराकमी राजा हैं । मुनिराजके ऐसे । वचन सुन राजा मृगांक पुत्रोकी ओरसे निश्चिन्त हो रहने लगे। किसी समय मराल द्वोपके स्वामी , राजा रत्नचूड़ने रतिके समान सुन्दरी और कमनीय वर्णसे शोभित वह पुत्री देख ली और उसे । मांग बैठा परंतु मुनिवचनके गाढ़ श्रद्धानी राजा मृगांकने रत्नचूड़को पुत्री नहीं दी। रत्नचूड़को। यह बात सहन न हो सकी और उसने जलकर अपने सैन्यमंडलसे केरला नगरी घेर ली। मैं यह चपकायापा MR.. .
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy