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लाल चलातिने ॥ १८७ ॥ मृते राशि स्वयं राजा भूत्वा पाया मजाः : oriमुसाको पुरवठी कौरषत् ॥१८८॥ दुष्टान् संस्था
| पयामास शिष्टान्नाशयतिस्म सः । तदा संचिंत्य मंत्रीशो गूढपत्रमलीलिखत् ॥ १८६ ॥ दया दूतकर पत्रं प्राहिणोत् श्रेणिकं प्रति। गत्वा दत्तं शुभं पत्रं वाचयित्वा शमाप सः॥ १९ ॥ आशां श्रीदत्तस्य नीत्वा मुक्त्या प्रिया सुतं । गूः पंचसहस्राश्च सुभटः सदितो ययौ॥ १६॥ ससैन्य श्रेणिक मत्या नीत्वा द्रव्याज भयात् । निःसृत्य नगरात्सोऽपि पल्लीनाथितास्तदा ॥ १२॥ गजारूढ़ो
महाराजा वृषस्कंधः प्रतापवान् । छत्रचामरसंयुक्तो विवेश निजपत्तनं ॥१९३॥ शुभयोगेऽधितस्थौ यो विष्टरं राजलक्षणः । साधयित्या असमक्षमें चलोती पुत्रको राज्य प्रदान कर दिया ॥ १८७॥ आयुके अन्तमें महाराज उपश्रेणिकका
मरण हो गया । वह राजा होकर प्रजाका पालन करने लगा। उसके राज्यकालमें इंद्राणी आदिक जो रानियां थी वे चोरोंके समान बड़े दुःखसे रहने लगी । राजा चलाती तनिक भी उनके दुःख सुखपर ध्यान नहीं देता था ॥ १८८ ॥ वह दुष्ट राजा अपने राज्यमें दुष्टोंकी बढ़वारी करता था
और शिष्ट-भले आदमियोंका विनाश करता था। समस्त प्रजा उसके शासनसे दुःखित थी। मंत्री मतिसागरको बड़ी चिंता हुई। अच्छी तरह विचारकर उसने कुमार श्रेणिकको एक गूढ़ पत्र लिखा एवं दूतके हाथमें देकर उसे कुमार श्रेणिकके पास भेज दिया। जहांपर कुमार श्रेणिक रहते थे दूत सीधा वहां पहुंचा है कुमारके हाथमें पत्र दे दिया, जिसे वांचकर कुमारके चित्तको बड़ी भारी शांति मिली ॥ १८-१६० ।। उन्होंने शीघ्र ही अपने श्वसुर इन्द्रदत्तसे राजगृह नगर जानेकी आज्ञा मागी। प्रियतमा नंदश्री और पुत्र अभयकुमारको वहीं छोड़ा एवं पांच हजार गूढ़ वेषधारी
सुभटोंके साथ शीघ्र ही राजगृह नगरकी ओर प्रस्थान कर दिया ॥ १६१ ॥ राजा चलातीने जिस kd समय कुमार श्रेणिकको सैन्यसे मंडित आया सुना साथमें बहुतसा द्रव्य लेकर वह शीघ्र ही नगर
से वाहिर निकल गया एवं अपने नानाके पास जाकर भीलोंकी पल्ली में रहने लगा ॥१६२ ॥ कुमार से श्रेणिक उसी समय राजगृह नगरके महाराज बन गये एवं बैलके समान पुष्ट स्कंधोंके धारक महा प्रतापी एवं छत्र और चमरोंसे शोभायमान वे महाराज श्रेणिक विशाल हाथीपर सवार हो अपनी
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