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________________ मल० ७ संक्षामं संविधाय करोहसः । द्रष्ट्वा लोकास्तथाभूतं संसयामासुरेव तं ॥ १८२ ॥ वसुपालोऽवदद्वाक्यं प्रार्थय त्वं मनोगतं । सप्तवासरपर्यतं देहि देशेऽभयं ब्रतं ॥ १८३ ॥ प्रतिपच तथा राजा तस्थौ राज्ये सुखान्वितः । शुभे लग्ने महायोगेऽजीजनन्दनं च सा ॥ १८४ ॥ दोहदाकांक्षया नाम्ना चक्र ऽभवकुमारकं । अनुक्रमेण संप्राप्तो यौवनं विद्ययान्वितः ॥ १८५ ॥ नंदश्रिया समं क्रीडन, णिकातुरां गफः । कर्म्मपंकज संसक्तो गतं कालं न वेश्यसौ ॥ ९८६ ॥ यथोप णिको राजा क्षयं ज्ञात्वायुषों ध्रुवं । सर्व सामंतसामक्ष्यं ददौ राज्यं करना चाहिये बस चित्तमें क्रोधकर तत्काल उठ बैठे और मुष्टियोंके प्रहारोंसे उस मदोन्मत्त भी हाथीको देखते देखते वश कर डाला ॥ १७८- १८१ ॥ हाथी जिससमय मदरहित शांत और सीधा हो गया कुमार उसके ऊपर चढ़ लिये उनका यह लोकोत्तर प्रभाव देख सारा लोक उनकी प्रशंसा करने लगा ।। १८२ ॥ राजा वसुपालके कानतक भी यह समाचार पहुंचा वह | आकर कुमारसे मिला और कहने लगा-कुमार ! तुमने बड़े साहसका कार्य किया है मैं तुमसे प्रसन्न हूँ जो तुम्हें मांगना हो सानंद मांग सकते हो। कुमार श्रेणिक सातदिन तक अभय दानकी चिंता में थे इसलिये राजासे उन्होंने यही कहा कि कृपाकर आप सात दिनतक अपने देशमें अभय दानकी घोषणा कर दें। राजा वसुपालने कुमारकी बात स्वीकार कर ली और वह सुख | पूर्वक अपना राज्य करने लगा। शुभ लग्न और शुभ योगमें रमणी नंदभीके पुत्र हुआ। दोहले के अनुसार उसका अभय कुमार नाम रखा गया । क्रमसे वह युवा हो गया एवं अनेक विद्याओंका भंडार बन गया । १८२ - १८५ ॥ चतुर अंगके धारक कुमार श्रेणिक रमणी नंदश्री के साथ सानंद क्रीड़ा करने लगे एवं रतिक्रीड़ारूपी कमलमें इतने आसक्त हो गये कि जाता हुआ काल भी । उन्हें नहीं जान पड़ने लगा ॥ १५६ ॥ कुमार श्रेणिक तो उधर इन्द्रदत्तके घर रहने लगे इधर महाराज उपश्रेणिकको जब यह मालूम हो गया कि मेरी आयु बिलकुल समीप है तो उन्होंने समस्त सामन्तोंको इकट्ठा किया और सर्वोके
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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