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________________ विमल eks kamalay महापये किलो नानारसैध स् । हाटके ताम्रलोहस्य ईसपाकरसस्य वा ॥६६॥ पञ्चकत्यो बिधायासी दोन जम्बुन धनं। दध्याधिति निजे चित्तं तृष्णसिंधमिमध्यगः ॥ १७॥ यस शैलटे सन्ति बल्लीजालानि वेगतः । तत्र गत्वा धनं पूर्ण कृत्वा तिष्ठा. मि समि ।।६८॥ एकदा धनुगवाय निषा सशरपुनः । निशोथे निर्ययो चिनो महेंद्र भूधर प्रति ॥ ६।। अस्मिन्नवसरे भ्राता विचित्राख्यो महामनः । अर्धापरवा धनं प्राज्यं सेवकैदशभिः सह ॥ ७० ॥ अदूरपति मत्वा स्व पतन नगराभिध। द्वादश वत्सरे तस्मिन् मार्ग समुत्सुक्तः ॥ 5 शासन' को प्रजजल्पेऽग्रजोऽनुज । श्यामाया का समायासि निशि बृतानु त | सोनेके इस प्रकार तयार होने पर उसका तृष्णा समुद्र बराबर बढ़ने लगा इसलिये एक दिन उसने अपने मनमें यह विचार किया| जिस पर्वत पर बहुत सी लताये हों वहांपर जाकर मुझे बहुतसा सोना तयार कर लेना चाहिये। एवं पीछे भानन्दसे घरमें रहना चाहिये ॥६५-६६ ॥ एक दिन हाथमें उसने बाण चढ़ाया हुआ - धनुष लेलिया एवं ठीक गत्रिके समय वह महेंद्र नामक पर्वतकी ओर चल दिया ॥ ७० ॥ वह पहाड़ पर जाकर पहुंचा ही था कि उसी समय उसका छोटा भाई विचित्र जो कि अत्यंत वुद्धिमान था बारह वर्ष बाद लौटकर अपने देश आया एवं अपना नगर नामका पुर बहुत ही समीप समझफर केवल दश सेवकोंके साथ उस मार्गसे अपने पुरकी मोर जाने लगा। जिस समय यह महेंद्र पर्वतके पास आया और चित्रने उसे देखा शीघ्र ही उससे इस प्रकार पूछा___अत्यन्त अधियारी रातमें यह कौन जारहा है। शीघ्र उत्तर दो। चित्रके इस प्रकार पूछने पर | विचित्रने भयभीत हो इस प्रकार उत्तर दिया-तुम्हीं बतलाओ तुम कौन हो। शीघ्र बतलाओ। नहीं अभी चक्रसे तुम्हारे दो खण्ड किये देता हूं ॥७१-७४॥ विचित्रकी इस प्रकार निष्ठुर वाणी। सुन चित्र भी भयभीत होगया। एवं अपने भाई विचित्रको अपनी अजानकारीसे बैरी मान उसके। S
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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