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________________ HECKERA ऽमूमुक्वचित धासपुष्पफलानि च ॥५६॥ योगी मरवा परभक्त सम्मान पहुंचा ददौ।स्वार्थाधारोऽस्तु सत्पमा स्वार्थः प्रेम प्रियो हितः।।६० ॥ सदासर सामारभ्य चित्रोभसमांगिनोऽकरोगा भक्ति भूरितरां नित्यं दिवानक्तं प्रतिक्षणं ॥६१॥ षण्मासा वधिमास्थित्वा गन्तुकामो बभूव सः । तदाषमाण चित्रस्तमिति प्रमाद्रमानसः ।। ६२॥ हे अनाम दीनेश ! मन्वाहनमहासुरः । तथा त्वं देहि मे स्वामिन् भुनज्म्या तीयितं सुख ॥ ६३॥ लगो तदुमक्तिभारेण प्रसन्नीभूय पेत्य वै। स्वर्णसंपादिसद्वियां दत्त्वीया चति तं भृशं ।। ६४१ मध्यरात्रं त्यया बाल ! विधषो विधिकत्तमः । विद्याया गुप्तमावेन सिद्धि; संपद्यते सदा ।। ६५ ।। गते तस्मिन् लिये उसे बड़े चाव अादरसे विटाया ठीक ही है जिससे स्वाथ सटता है वही मनुष्योंका प्यारा होता है क्योंकि स्वार्थ ही प्यारा और हितकारी माना है ॥ ६१ ॥ उस दिनसे लेकर चित्र प्रतिक्षण योगीकी टहल चाकरी करने लगा। वह कापाली छह मास तक वहां ठहरा । छह मासके बाद | व उसने चलनेका विचार कर लिया। कापालीको इसप्रकार जाते देख चित्रने प्रेमसे गदगद हो उससे इसप्रकार विनय पूर्वक प्रार्थना कीP प्रभो! आप कामदेवके समान सुन्दर हो। दीनोंके स्वामी हो एवं मन्त्रसे महासुरको बुलाया देने वाले हो । स्वामिन् मुझे कोई ऐसा मन्त्र दीजिये जिससे मैं अपना जीवन सुखसे बिता सकू। ॥६२-६४ ॥ कापाली तो चित्रकी भक्तिसे अत्यन्त प्रसन्न था ही। उसने शीघ्र ही उसे सुवर्ण P बनानेवाली विद्या प्रदान करदी और सेठपुत्र चित्रसे यह कहा-- प्रिय बच्चा ! ठीक आधी रात के समय तुम इस मन्त्रको विधि पूर्वक साधना क्योंकि विद्याकी सिद्धि गुप्त रूपसे ही होती है यह नियम है वस इसप्रकार मंत्र देकर कापाली अपने अभीष्ट स्थानको चला गया। सेठ पुत्र चित्रने उसके पीछे अनेक रसोंमें तामे और हंसपाक रसका सोना बनाना प्रारम्भ कर दिया। इस रूपसे उसने पांचवार जाज्वल्यमान और उत्तम सोना बना लिया wa T i-T- ma
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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