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________________ ॥ ५३ ॥ विचित्राको बदन् ॥ ५२ ॥ मत्या पुत्र विकीर्तितं श्रेष्ठ दवा किन पृथक्नो गुहा लघुत्वा मातरं पितरं शुभः । चचाल सिंहलद्वीपं वाणिज्यायें धनप्रियः ॥ ५४ ॥ सा गोराशि त दो चार पुण्यवः । वसु छ दशकोटीनां व्यापारं कृतवान् सकः || ५५ ॥ अथाज्ञानेन चित्रेण भुकं सर्व वसू स्वरा निःस्त्रोभूयं समाप्येव व्याविति मोडतरे ॥ ५६ ॥ स्वर्णव्यादिधानां कर्तुः पार्श्व यह सदैव गुटिकायां स्वीकयतिः ॥ ५७ ॥ स्वेति मान यात्रस्थि तस्ताचट समाफणत् । कापाली प्रेतकोठारे फालन्दाख्यगमत् ॥ ५८ ॥ ख्यात' तं योगिनं श्रुत्वा नील्या मिष्टान्नागतः । तस्याओं | समान बड़ २ करता रहता था ॥ ५३ पुत्रको इस प्रकार जूझाका व्यसनो देख सेठ कुमारपालने उसे कुछ धन देकर जुदा कर दिया तथापि उस दुष्टने जुआ खेलना नहीं छोड़ा ॥ ५४ ॥ छोटा पुत्र विचित्र वड़ा ही सुशील और अच्छा था और धनमें विशेष प्रेम रखता था इसलिये अपने | पिता माताको नमस्कार कर वह एक दिन सिंहल द्वीपकी ओर व्यापार के लिये चल दिया ॥ ५५ ॥ विशाल समुद्रको तर कर वह अपने विशिष्ट पुण्यके उदयसे सिंहलद्वीप जा पहुंचा और बारह करोड़ दीनारों से उसने व्यापार करना प्रारम्भ कर दिया ॥ ५६ ॥ PAYA बड़ा पुत्र चित्र देशमें ही था । उसने धन खा बिगाड़ डाला जब उसका सारा धन नष्ट हो | गया उस समय वह अपने मनमें विवचारने लगा जो पुरुष सोना रूपा यादि धातुओंका बनानेशला हो यदि मैं उसके पास थोड़े दिन रहूं तो मैं गुटिका विद्या (सोना आदि बनानेकी विद्या) शीघ्र सीख लू क्स ऐसा विचार कर वह बैठा ही था कि उसी समय कालन्द नामका एक कापाली श्मसान भूमिमें आ पहुंचा जो कि अङ्गमें भवूति रमाये था । चित्रने भी कापालोके यानेका समा चार सुना । शोध ही मिष्टान्न लेकर वह उसके पास गया । नमस्कार किया एवं वत्र पुष्प फल भेंट कर दिये ।। ५७-६० || चित्रकी यह चेष्टा देख कापालीने भी समझा कि यह बड़ा भक्त हैं इस 「絶縁んがん
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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