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________________ प्रपनयन AYANA भाजो हि धार्मिकाः ॥ १० ॥ हरिर्विमलनाथस्थ प्रतिदिवं यथाकृति । कृत्वा स्फटिकसङ्कासमर्चयामास सादरं ।। ११ । परोक्षस्तुति मारेमें देवराजो जिनेशिनः । इति दोःकुमोल मानिर्मलाः जयनाधीश जय त्वं जगतांपते । तपोनिधे व्याम्भोधे मुक्तिलक्ष्मीप्रिय प्रभो ! १३ || मोहजेता त्वमेवासि त्वं सर्वज्ञः शिवप्रदः । कर्मध्वंसी चिदानन्दो भव्याम्भोजदिवामणिः ॥ १४ ॥ स्वामाराध्य जनाः सर्वे देवदेवेश्वरादयः । शिवं सदातनं यांसि समुनीर्य भवाम्युधि ॥ १५ ॥ स्तुत्वेति मघवा भावसुधापान (परो जिनं । कर्पूरागुरकल्याणन मेरुकुसुमोद्भवैः ॥ १६ ॥ सुगंध : केसरैर्नानावस्तुभिः सुरनायकः । संस्कारविनयं कृत्वा चार प्रांस्प धर्मात्मा होते हैं वे भक्तिमान होते ही हैं ॥ ११ ॥ इन्द्रने भगवान विमलनाथकी स्फटिकमयी प्रतिमाका शीघ्र निर्माण किया और बड़ी भक्ति से उसका पूजन किया। निर्मल चित्तके धारक इन्द्र अपने दोनों हाथ जोड़ लिये और उनके परोक्ष रहते भी वह इस प्रकार निर्मल भावोंसे स्तुति करने लगा -- हे भगवन् ! आप आठो कर्मोंके जीतने वालोंके स्वामी हैं । समस्त जगतके पति हैं । तपोनिधि और दयाके समुद्र हैं। मोक्ष रूपी लक्ष्मी के प्यारे हैं। मोहके जीतनेवाले केवल च्याप ही है । सर्वज्ञ और कल्याणों के प्रदान करनेवाले हैं। कर्मोंके नाश करनेवाले चिदानन्द चैतन्य स्वरूप और भव्यरूपी कमलोंको प्रसन्न करनेवाले सूर्य हैं इसलिये हे भगवन् ! आप संसारमें जयवंते रहें । १२ – १५ ॥ प्रभो ! देवोंके देव इन्द्र आदि भी तुम्हारा आराधन कर संसाररूपी समुद्रको तर कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । उत्तम भावरूपी अमृतके पान करनेवाले इन्द्रने इसप्रकार भगवान विमल नाथकी स्तुति की। कपूर अगुरु कल्प वृचोंके फूल और भी नाना प्रकारको सुगन्धित चीजोंसे विनयपूर्वक भगवान के शरीरका दाह संस्कार किया एवं भक्तिसे गदगद हो नृत्य किया ॥ १६-१८ ॥ सम्मेदाचल पर्वतके चारो ओर अपनी २ देवांगनाओंके साथ श्रेणिरूपसे समस्त १५५०५०% 医者や看わせ
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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