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________________ eHERध wai युग पदुभुषित बनपाण्यनुगा धीरजयध्यानप्रवादिनी ॥२॥ ऐराष गऊ शकः पुरस्कृस्य खचाल खे। पुरस्ताग्मतकोत्रात वमल विमोहयन् ॥ ३॥ चित्रमेतद्यादाकाशे पावन्यासो न दृश्यते । रम्माणां मसकीना स वेवानां चलतामपि ॥४॥ केचित्कुन्तकरा-देवाः केविच्छक्तिधनुर्धराः। केचित्कराशयः केचिस्पाणिपाशा व स्तरां ॥५॥ विशलधारिणः केचिदुशिमालफराः परे। संवेलुरसुरा को तराश्च दिगाश्रिताः ॥६॥ कपामराः स्थिताः केचितव्योमयानेष दोकताः । इसारूढ़ामराः केचित् हस्तमाल्या मनोरमाः ॥ ७॥ यासनारूढ़ा देवाः केचित् शुकप्रियाः । केकियानाश्चल तिस्म मरुन्मार्गे करायुधाः ॥ ८॥ असंख्याससुराः पञ्च पयः EAN शकृता वभुः । प्रत्येकं पञ्चवर्णाशुविचित्रवालसो ध्रुवं ।। ६॥ सम्मेदागं समालोक्य दूरतः लुरपादयः । उसेवाहनाद्भक्त्या भक्ति उस समय चारों ओर जय २ शब्द करते हुए चारों निकायोंके देव एक साथ इन्द्र के पीछे २ चल दिये ॥ २॥ ऐरावत हाथीपर चढ़कर सवोंके सामने इन्द्र चलने लगा। उस समय ऐरावत हाथीके सामने अपने नाचसे समस्त लोकको मोहित करता हुआ देवांगनाओंका समूह नाचता चला जाता था ॥३॥ ग्रन्धकार आश्चर्य प्रगट करते कहते हैं कि यद्यपि वे आकाशमें चलते थे परंतु कहां पैर रखते थे और कहां नहीं रखते थे! सूझ नहीं पड़ता था। भगवान के निर्वाण कल्याणके उत्सव मनानेके लिये आनेवाले देवोंमें बहुतसे देव अपने हाथों में माला लिये थे वहुतसे शक्ति धनुष तलवार पाश त्रिशूल बन्दूक के धारक थे इस रूपसे तो असुर जातिके देव चलने लगे तथा इसी प्रकार दिशाओं में रहने वाले व्यन्सर लोग भी चलने लगे ॥ ५--७ ॥ कल्पवासी देवोंमेंसेव हुतसे देव अपने द्वारा 1 रचे गये बिमानोंमें सवार होलिये । बहुतसे हाथोंमें माला धारण किये हंसोंपर चढ़ लिये । बहुतसे । हाथोंमें हथियार लेकर गरुड़ शुक और मयूरोंके आसनों पर चढ़कर आकाशमार्गमें चलने लगे। यद्यपि देव असख्याते थे तथापि इन्द्रने उन्हें पांच श्रेणियोंमें विभक्त कर रक्खा था और हर एक पांचों वणोंके अनेक प्रकारके वस्त्रोंसे शोभायमान थे॥१०॥ जिस समय देवोंने सम्मेदाचल पहाड़को देखा.भक्तिसे गदगद हो वे शीघ्र ही अपने २ वाहनोंसे उतर गये ठीक ही है जो पुरुष । F-HEIR REF RKY ERRENERATE NEERealer
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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