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________________ ACK न नाटकं ॥ १७ श्रेणी भतार सराव परिसस्तो भूधर । नत्यतिम्म नमामि संगता जयवादिनः ॥१८॥ रक्तदोपल्लबाभिश्च रम्मावल्लीभिरचिताः । हैमीभिः सरकल्पागाः, स्फुरन्तीभिरिवानलात् ॥ १६॥ ग्रायतिरिक्तकंठश्व गुर्ण श्रीविमलेशिनः । नियों यन्त्रमादाय नानारागरसान्वितैः ।। २० ॥ हावभाषैरसैस्साले लिललितविग्रहाः । जैगीयन्ते यशोवृन्द स्थूलपानपयोधराः ॥ २१ ॥ मृदंग परहाराचे स्निग्धरम्भास्वनेर्वभौ। नगनं भूतलं चापि भाराशिजयारवैः ॥ २३॥ जिनेन्द्रचरणाम्भोजपवित्र भूधरं सुराः । पुमहता यो नत्या जामि यथायथं ॥ २३ ॥ महता. समलिन गो सत्फल विद्धाति च । जितेंद्रचरणन्यासाद्भूधरो पन्यते जनः ।। २४ ।। - देव नृत्य करने लगे एवं मिलकर भगवान विमलनाथकी जय उच्चारने लगे ॥ १६ ॥ जिस प्रकार कल्पवृक्ष पचनसे झ कोरे खाती हुई लताओंले विशेष शोभायमान जान पड़ता है उसी प्रकार उस समय देव रूपो कल्पवृक्ष भी लाल २ हाथोंसे शोभायमान नृत्यकालमें चलती फिरती देवांगनाओं से अत्यन्त शोभायमान जान पड़ते थे ॥ २०॥ सुन्दर शरीरोंकी धारक एवं उन्नत स्थल नितम्बोंसे शोभायमान किन्नरो जातिकी देवांगना अनेक प्रकारको राग रागिनियोंसे युक्त एवं हाव भाव रस चाल ढालोंसे मिश्रित अपने मनोहर कंठोंसे भगवान विमलनाथके गुणोंको वखानने लगीं ।२१-२२ ॥ | उस समय मृदङ्ग और नगाड़ोंके शब्दोंसे कोमल देवांगनाओंके शब्दोंसे एवं इन्द्रोंके द्वारा किये . गये जय जय शब्दोंसे गूजता हुआ समस्त आकाश अत्यन्त शोभायमान जान पड़ता था ॥२३॥ भगवान विमल नाथके चरणोंसे पवित्र सम्मेदाचलको देवेन्द्रोंने भक्ति पूर्वक नमस्कार किया एवं सबके सव अपने २ स्थानोंपर चले गये ॥ २४ ॥ ग्रन्थकार सज्जनोंको प्रशंसामें कहते हैं कि महान IRD पुरुषोंकी संगति उत्तम फल प्रदान करती है देखो भगवान जिनेंद्रके चरणोंके सम्पर्कसे ही सम्मे दाचल पर्व समस्त लोकका वंदनीय बन गयो ।॥ २५ ॥ जो महानुभाव मौनव्रत और ब्रह्मचर्यत्रत से भूषित सध्मेद शिखरकी यात्रा करते हैं उन्हें संसारमें अद्भुत विभूतिकी प्राप्ति होती है। E TRATAYERRY REATMEहान RAV SH
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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