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विता भोज्यं सर्षिःशाकादिधरित । तदा भुमि गौरागि ! तप्तजांधूनदरमे ॥ १६३॥ भर्तस्त्रलितया घाण्या श्रुत्या तद्वांछितं सका अबोचद्दे हि तान् रम्यान कुर्वेऽहं भोजन वरं ॥ १६॥ आदाय चूर्णकं कृत्वा पूपं कृत्वा ददौ करे । आलिकायास्तदा साएि नोत्वा घू तगृहं ययौ ॥ १६५ ॥ भाजन द्यूतकारश्च पट्टकूलं प्रसारितं । विलोक्य जगदे साहि श्रूयतां सदनो मन ।। १६६ ॥ देवत्ताधिप्ठितं पूर्व यो गृह्णाति धराक्षिकः लाभ मनीप्सितं सोऽपि लभेतालं न संशयः ॥ १७ ॥ अत्याग्रह विधायाशु दत्त्वा द्रव्यं धनं धनी। नाम्ना जग्राह पूपं तं धनं नीत्वा गृहं ययौ ।। १६८ ॥ स्वामिन्या तेन द्रव्येण पूपापायसव्यंजनं । निर्माप्य भोजयामास तांन्यूलं च
रांगी ! संसारमें तुम बडी चतुर सुनी जाती हो में भी कुछ चतुरताका अभ्यास रखता हूँ मैंने आज Lal यह प्रतिज्ञा की है कि मेरे पास वत्तीस चावल है यदि केवल उन्हीसे धी और शाक आदिसे परिपूर्ण
मेरे लिये भोजन तयार किया जायगा तो मैं उसे खाऊंगा बीच नहीं खा सकता। सुवर्णके समान , प्रभावाली गौरांगी ! यदि तुम इसरूपसे भोजन तयार कर सको तो में खा सकता है। कुमार श्रेणिक जिससमय यह कह रहे थे विशिष्ट आनंदसे उनकी वाणी कुछ कुछ स्खलित निकलती थी। चतुर नंदश्री स्खलितवाणीसे उनके मनका अभिप्राय समझ कहने लगी--कृपाकर उन बत्तीस चाव
लोंको दीजिये मैं अभी आपके लिये मिष्ट और मनोहर भोजन तयार करती हूँ॥ १६१-१६५॥ IT कुमारने उसी समय बत्तीस चावल दे दिये । कुमारी नंदीने शीघ्र उन्हें पीसकर पूर्व बनाये।
सखीको बुलाकर उन्हें वजार वेचनेके लिये भेज दिया । वह सखी भी बडी चतुर थी जहां ज्यारियों IS का अड्डा था वहां पहुंची। ज्वारी लोग कपडा विछाकर जिससमय जू आ खेलना प्रारंभ करने लगे
उस समय उस सखीने इसप्रकार मनोहर वचनोंमें कहा___देखो भाइयो । ये पूर्व जो में लाई है देवमयी हैं । जो महानुभाव इन पूवोंको खावेगा वही | उत्तम ज्वारी इच्छानुसार घन उपार्जन करेगा इसमें किसी बातका संदेह नहीं। बारियोंको कल कहां? बड़े आग्रहसे शीघ्र ही उन्होंने पूर्व खरीद लिये ।मुहमागा धन दिया एवं उस धनको लेकर वह 1 सखी शीघ्र ही अपने घर आ गई ॥१६६–१६८ ॥ कुमारी नंदनीने उस द्रव्यसे पूवा खीर आदि
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