SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | दिश्यते पंकः समस्याब कर्य ननु ॥ १५३॥ यामि प्रस्तरपंक्त्याऽई पतिष्यामि यदा तदा । हसिष्यंत्यषिला लोका अतः पंके प्रयाम्यहं ।। चित्त्यं गतवान् सद्मद्वारे नंदश्रिया तदा । कौशल चिंतयामासे (स)सन्नरस्य सकौतुक ।। १५५॥ सख्या संप्रेषयामास पादक्षा. लनहेतये 1 अंजलिप्रमित तोयं दृष्ट्यासौ तस्यचितयत् ॥ १५६ ॥ इयं धूर्ता समीक्ष्त्येत कौतुकं यत्करोत्यदः । वेणुचीर्यातदुत्तार्य | क्षालयामास पत्कर्ज १५७१ नंदश्रीश्च तदा स्वोते धतुरंतव्यचिंतयत् । मुई गत्वालिका प्राहाकारयेति सुभोजने ॥ १५८॥ आकारितस्तदा तत्र रम्यांगो राजलक्षपाः । आगतो लीलया युक्तः प्रापूर्णक इव स्थितः ॥ १५६ ।। आगतस्वागतं कृत्वा नंदधीर्घवनं जगौ । तिष्ठ तिष्ठासने साधो! कुरु भोज्यं मनीप्सितं ॥१६०॥ तदाकर्ण्य कुमारोऽसावत्रवोत्तां शुभाशयां। श्रयसे चतुरा लोके त्वं ललामि! चकोरटूक् ॥ १६१ ॥ प्रतिक्षाय कृता वाले ! मया विज्ञानशालिना । द्वाविशतंदुला रम्या विद्यते मम पार्द के ॥ १६२॥ तेषां चेन चाके लिये नंदश्रीने अंजुलीप्रमाण जल उनके पैर धोनेके लिये सखीके हाथ भेजा।कुमार उस थोड़े से जलको देखकर मन ही मन विचारने लगे कि मेरे साथमें जो दिल्लगी हो रही है वह इसी धूर्त नंदश्री द्वारा की जा रही है खैर, उन्होंने वांसकी फच्चट लेकर शीघ्र ही सारी कीचड़ उतार डाली और उस थोड़ेसे जलसे अपने पैर धो डाले । कुमारकी इसप्रकार बुद्धिमानी देख नंदश्रीने मन ही मन उन्हें अत्यंत चतुर समझ लिया । बडी खुश हुई एवं अपनी सखीसे यह कहा कि कुमारको 9 भोजनके लिये लिवा लाओ। नंदश्रीके कहे अनुसार सखीने कुमारको भोजनके लिये बुलाया। मनोहर अंगके धारक एवं राजलक्षणोंसे शोभायमान वह कुमार भी क्रीडापूर्वक नंदश्रीके पास आ गया एवं जिसप्रकार अतिथि आकर बैठ जाता है उसप्रकार आकर बैठ गया ॥ १५२-१५६ ॥ अतिथिका जिसरूपसे स्वागत करना चाहिये नंदश्रीने बड़े उत्साहके साथ उनका स्वागत किया एवं मनोहर वचनोंमें वह इसप्रकार कहने लगी... IS महानुभाव ! आइये इस आसनपर विगजिये और इच्छानुसार भोजन कीजिये ॥ १६० ॥ शुद्ध हृदयवाली नंदश्रीके ये मनोहर वचन सुन कुमारने कहा-चकोरके समान नेत्रवाली मनोह पपपपपपपपपपलचस्पर पपपपपपपपपर
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy