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________________ 171 तदुत्तरं ॥१६॥ नंदश्रीरंजिता तेन गत्यावाचा स्मरक्षण: । ददर्श ठयाकुली भूत्वा कामयाणादि ताहि ।।१७०१ स्वांग सा दर्शयत्येच कपोलौ दर्पणाविव । ईपद्धास्येन दंताश्च मुक्ताप्रणिचयानि च ॥ १७१ ॥ अन्योन्य तौ च कामांगों परं प्रेम प्रजग्मतुः । इंद्रदत्तोऽनु. IR रक्तां तां ज्ञात्वा तस्मै ददौ मुदा ॥ १७२ ।। श्रेणिकोऽपि तया सार्क रमे राजमुखः सुखं । रोहिण्या सीतया नाग्या चंद्रामधरेशवत् । शीघ्र ही उत्तम व्यंजन तयार कर दिये । कुमारको उनकी इच्छानुसार भोजन करा दिया एवं भोजनके बाद तांबुल देकर उन्हें संतुष्ट कर दिया ॥ १६६ ॥ कुमार श्रेणिकने अपनी मनोहर गतिसे मिष्ट वचनोंसे और तिरछी चितवनसे कुमारी नंदश्रीको अपने में अनुरक्त कर लिया। कामवाणों से व्याकुल हो वह उनकी ओर लालसा दृष्टिसे देखने लगी। कामके बशी भूत वह कुमारी कभी NI 4 अपना मनोहर अंग कुमारको दिखाने लगी कमी दर्पण के समान अपने कपोलोंको ती कभी कभी मंद मंद मुसकानेसे मोतियोंके समान अपने दातोंके दिखलानेकी चेष्टा करने लगी।१७०-.१७॥ से अपने आपसी व्यवहारसे वे दोनों कुमार कुमारी कामवाणोंसे पीड़ित हो अपना अपना प्रेम व्यक्त करने लगे । सेठ इंद्रदत्तको भी कुमारमें कन्याके अनुरागका पता लग गया, उन्होंने बड़ी खुशीसे 17 दोनोंका आपसमें विवाह कर दिया ॥ १७२ ॥ युवा कुमार श्रेणिक भी जिसप्रकार चन्द्रमा रोहिराणोके साथ रमण करता है रामचन्द्र सीताके साथ रमते थे और नागेन्द्र नागकुमारीके साथ रमण क्रियासे उपयुक्त रहता है उसप्रकार रमणी नंदश्रीके साथ रमण क्रीडा करने लगे ॥ १७३ ॥ कुछ कालके बाद रमण क्रीडा करते करते कुमारी नंदश्रीके गर्भ रह गया उस समय उसके एक दोहला भी हुआ जिसकी सिद्धि कठिन जान वह दिनों दिन कृश होने लगी। किसी दिन का एकांतमें आलिंगन चुम्बनके बाद बड़े प्रेमसे कुमारने नन्दश्रीसे यह पूछा—प्रिये ! मैं देखता हू दिनों दिन तुम कृश होती चली जाती हो । नहीं जान पडता तुम्हारी कृशताकी कारण कौंन चिंता है ? तुम्हें उसे प्रगट करना चाहिये । कुमारका इसप्रकार विशेष आग्रह देख नंदश्रीने कहा-कृपा TRYAYKEMAKERSY REAKANTARY КүKrkerkekerkeкүкүрекке
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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