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________________ व ढ सातये । रहाण्यं व्रतं स्तोत्सव बियोक्ते ॥ १६६ ॥ तव तं मलिपुत्र ण सार्क जग्राह प्रोतिरुत् । गंतुकामा यदाभूतां नत्वा को मुनिपुर २७॥ नाच हरि कृपा कुत सुप्त कप। सिंहन प्रहत वोक्ष्य ती च वैराग्यमापनुः ॥ १६८ ययेणं इसवान् सिहो सतगं कांतया सा । तपा कालीनो इंत नियति लादिति ॥१६६॥ तत्क्षणे वैविधा संग त्यक्त्वः मार्दवमानसी कर लोन शितार जा विराजे । १६५ ।। मानवको माहात्म्य लाने धालो यह कथा सुनाकर 2 MS मुनिराज धर्मरुचिने कुमार प्रांतिकरसे कहा --- A कुमार ? मोनत्र का यह विशिष्ट फल हैं इसलिये नित्य नैमित्तिकके भेदसे जो दो प्रकारका नोन बनलाया गया है वह अवश्य आचरण करना चाहिये । यद्यपि यह व्रत देखनेमें अति सुलभ जान पड़ता है तथापि वह महान पुण्य का कारण है इसलिये यह अवश्य आचरण करने योग्य है । ॥ १६६ ॥ मुनिराज धर्मरुचिले यह मोनवतका विशेष माहात्म्य सुन राजपुत्र प्रीतिंकरने मन्त्रीपुत्रके साथ शोर हो मानवतकी प्रतिज्ञा ले लो। भक्ति पूर्वक दानोंने मुनिराजको नमस्कार किया और वे अपने नगरको और चल दिये ॥ १६७ ।। जिस समय वे अपने नगरकी ओर लौट रहे थे उस समय मार्गमें क्या देखते हैं कि अपनो हिरणी के साथ लानन्द विषय भोग करते हिरणको सिंहने मार डाला है। बस हिरणको बसी दशा देवका उन्हें संलारसे वाग्य होगया और वे मनहो मन | यह विचारने लगे जिस प्रकार अस्नो स्त्रोमें तोत्र तृष्णा रखनेवाले इस हिरणको इस सिंहने मार डाला है उसी 5 प्रकार काल रूपो सिंह भो हमें नियमसे हनेगा—उसके भो पंजेसे बचना हमारा अत्यन्त कठिन है। बस शोघ ही उन दोनों कुमारोंने बाह्य अभ्यन्तर दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग कर दिया । परिणामों में अत्यन्त कोमलता धारण कर लो एवं वन में मुनिराज धर्मरुचिके पास जाकर शीघ्रही KheWEEKREYEKERSERY
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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