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________________ जग्राह संयम सारं पितुः पार्थे कृती स च ॥ १५ ॥ मतिसागानामा यो मंत्री निष्कासितः पुरात् । निदाने कृतथानेष स सांहाः स्यामिन्टू शठः ॥ १६॥ यद्याई चारितोऽनेन कोशलेन महीभुजा अई प्रमाणं तहां ग्रे इत्येनं कष्टतो ध्वं ॥ १६१ ।। निदानमिति कृत्वासौमत्रो निधनमासदत् । मौद्गल्यपर्वते सिंहो बभूवारुणधेसरः॥ १६२॥ अथैकदा मुनी तौ द्वौ मौदगल्यगिरिमा पतुः । वृत्या योगं स्थिती तल तावत्सिंहः समागतः ।। १६३ ।। पूर्वबैरानुबंधन कोधारणितलोचनः । न त परैः पापो भक्षयामास ती मुनी। ॥ १६४ ॥ शुद्धध्यानेन तौ वीरौ क्षाकचे णिमाश्रिती । केवलज्ञानमुत्पाद्य प्राप्तुः परम पदं ॥ १६५ ॥ भतो वत्स ! विधातव्यं मौन वैध उन्होंने मंत्री श्रुत सागरको समझा इसलिये समस्त राजपाट उसे सौंप दिया एवं पुण्यवान वे राजा सुकोशल अपने पिताके पास दिगम्बरी दीक्षासे दीक्षित होगये ॥ १५८ -१५६ ॥ मंत्री मतिसागर जिसे कि राजा सुकोशलने उसके दुष्ट भावोंके कारण राज्यसे तिरस्कार पूर्वक निकाल दिया था वह जहां तहां पृथ्वी पर घूमता फिरा एवं अन्त समयमें उस स्वामीद्रोही मूर्ख और दुष्ट ने यह निदान वांधा मैं जो इस राजा सुकोशलने अनादर पूर्वक निकाला हूं उससे में ऐसा हूं जो इसे कष्ट शपूर्वक मारू बस ऐसा महादुष्ट निदान बांधकर वह मंत्री मरा और मुद्गल पर्वत पर वह लाल २ आल वालोंका धारक सिंह होगया ॥ १६८-१६२ ॥ एक दिनकी बात है कि पिता पुत्र थे दोनों मुनि जहां तहां विहार करते २ मुदगल पर्वत पर आये और उसकी विस्तीर्ण शिलापर योग धारण कर स्थित होगये। जहाँपर ये योग धारण कर विराजे थे वह सिंह भी वहांपर आया। पूर्व जन्मके तीब्र वैरके कारण मारे क्रोधके उसके नेत्र लाल होगये एवं तीन नख और दांतोंसे दोनों मुनियों का शरीर विदारण कर वह दुष्ट भक्षण कर गया ॥ १६३–१६४॥ वे दोनों ही मुनिराज परम धीर वीर थे अपने परिणामोंकी विशुद्धिसे वे क्षपक श्रेणी में आरूढ़ होगये एवं केवलज्ञानको प्राप्त HAYATYAKARKaiswageपापा
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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