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________________ . ramin SEEMOREners... कण्ठे दरखास्य धीमतः। मुष्टिघात साज्य स निष्कासित पवत: स्वव्यहरणोद्भ नशोकध्याकुलिताशयः । चकार पूरक । सिगाढे राजद्वारे पुरे खिले ॥१२॥ सत्यघोषोपि राना लोकाने सर्वतोपि वा एवं निरूपयामास नि:स्वारस्युग्रंथिला धू। ॥१३॥ चकार शपथ सैना: शुदग स्वस्य पधोः। नपस्याऽधमो गृघ्बरधीतोऽपि भृशं शठः || १४॥ भद्रमित्री निशाप्रांते रोरोत्या | I रुह्य भूम्ह । प्रत्यहं चेति पूकार कुर्वन् कातरचेतसा ॥ १५ ॥ द्विजेनाने न दुष्टेन वंचितोऽह विनागसा । किं करोमि क्र गच्छामि * गलेमें अर्ध चन्द्र-अर्ध चन्द्रमाके आकार वाण गिरवा दिया । और मुक्कोंकी मार मार कर उसे नगर । से बाहिर निकाल दिया ॥ ६१ ॥ अपने द्रव्यके इस प्रकार अपहरण हो जानेसे भद्रमित्रा चित्त भयँकर शोकसे व्याकुल हो गया। उससे और तो कुछ नहीं बना समस्न पुर और राजाकी व ड्योढी पर वह रोता चिल्लाता घमने लगा ॥११-१२ ॥ मन्त्री सत्यघोषने भी राजा और पुरवासियों के सामने सब जगह यही बात स्वीकार की कि जिन मनुष्योंका धन चला जाता है ये निश्चयरूप से पागल हो ही जाते हैं ।। ६३ ॥ दुष्ट बुद्धि सत्य घोषसे जब यह पूछा गया कि क्या तुमने इसके सरल लिये हैं ? तो समस्त शास्त्रोंको पढ़कर भी वज मूर्ख महा लालची और नीच उस दुष्टने अपनी शुद्धिके लिये राजाके भी आगे न लेनेकी कसम खाई ॥६४॥ जिसका धन चला जाता है उसका दुख वही जानता है विचारे भद्रमित्रको धनके चले जानेसे कल कहां थी उसने प्रति दिनका यह कार्य हाथमें ले लिया कि वह प्रति दिन प्रातः कालके समय वृक्ष पर चढ जाय और दीन चित्तसे इस ) प्रकार करुणा जनक चिल्लावे बिना अपराधके इस दुष्ट ब्राह्मण मन्त्रीने मेरे रत्न अपहरण कर मुझे ठग लिया है। मैं क्या ? करू कहां जाऊ और किसके सामने अपना रोना रोऊ ॥ ६५-६६ ॥रे मन्त्री । महाराज सिंहसेनकी प्रसन्नतासे तुम्हारे सब कुछ है । यह तुम निश्चय समझो छत्र और सिंहासनके बिना सारा राज्य REKPAYTIरपाया ।
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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