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________________ KAPKE 1. हतः ॥ ८४॥ कोऽपराधः कृतस्तेन युष्माकं वदत स्वरः । यूयं कृतापराधा मे रे रे विद्याधराः ॥८५॥ इदानीं मारयिष्यामि मत्सहोदरये घोतान् । सर्वान् वियदुगतोन् नागपाश वज्र प्रहारतः ॥ ८६ ॥ ध्यक्षहतुनरं व्वाक्षाश्चतुभिर्हेति फारवाः । प्रभवो मत्लमा ते तु सहते कथं द्विषः || ८७ ॥ वासयन् विषभृन्नाथस्तान् कुकर्मकरान् शठान्। ततकेति चिरं चित्ते शिपामि क्षारतोयधौ ॥। ८८|| पतानधो विभागे वा पर्वतस्य क्षियामि स्वित् । अमपुरीमाशु वज्रेण दिक्षु दद्यां बलिं बलात् lice||अन्यथा हि यथा भ्राता हतः शत्र दुरात्मभिः तथा शस्त्रजालेन खण्ड खण्डं करोम्यमीन् ॥ १० ॥ विवाङ्गास्तदा खेटा भवन् लेलिहानपं । स्वस्थोभूत्वा कृपानाथ ! शृणुतावृत्त KPkst था। दुष्टो ! तुम लोगोंने मेरे भाईको मारकर मेरा घोर अपराध किया है। तुम समस्त विद्याधर मेरे पूज्य भाई के मारनेवाले दुष्ट हो । तुम्हें नागपाशके वज्र प्रहारसे शीघ्र ही मारूंगा इसमें कोई संशय नहीं ॥ ८०-८६ ॥ एक काकको यदि कोई पुरुष मार देता है तो उस मारनेवालेको अन्य काक पूर्ण कोलाहल मचाकर अपनी चोचोंके घातोंसे जब मार डालते हैं तब जो पुरुष मेरे समानः समर्थ हैं वे कैसे वैरियोंको सह सकते हैं! वे तो कभी बैरियोंसे बदला चुकाये बिना मान नहीं सकते। बस इस प्रकार उन दुष्ट कार्यके करनेवाले समस्त विद्याधरोंको नाग कुमारोंके इन्द्रने वेहद डाटा एवं उन दुष्टोंके विषयमें वह इसप्रकार विचार करने लगा इन दुष्टोंने कारण मुनिराज संजयन्तको दुखाकर तीव्र अपराध किया है ऐसे दुष्टोंको क्षमा कर देना महा पाप है इसलिये उस अपराधके बदलेमें इन्हें क्या मैं किसी खारे समुद्र में जाकर फेंक दूं । वा वज्र शस्त्रसे चारो दिशाओं में इनकी वलि प्रदान कर दूं । अथवा इन दुष्टोंने जिसप्रकार मेरे भाईको शस्त्रोंसे मारा है मैं भी उसी प्रकार शस्त्रोंसे इनके खण्ड खण्ड कर दूं । नागेंद्र कुमारका यह प्रबल क्रोध देखकर समस्त अपराधी विद्याधर थर थर कांपने लगे एवं चाटुमय वचन में इसप्रकार उन्होंने नगेन्द्र कुमारसे कहा APK
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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