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हत्यपहचापपपपपपाखर
संक्यप्रदेशश्व लोकवस्तुतो यतः ॥ ४ ॥ स्थावराणां विचधारिशङ्गेशश्व विरायुगां । सुररणां नारकाणां व द्वौ भे ही श्रीजिनागने
और नारिकियोंके दो दो भेद हैं तिर्यंचोंक चोतोस मनुष्योंक नौ और विकलेन्द्रिय दो इन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय इस प्रकार विकलेन्द्रियोंके नौ मिजकर जीवों के सव भेद ६८ हैं । खुलासा इस
प्रकार है-- | पृथिवी जल तेज वायु नित्य निगोद और इतर निगोद इन सातोंको सूक्ष्म और वादरसे व गुणा करनेपर चौदह भेद हो जाते हैं तथा उन चौदह भेदोंको पर्याप्त अपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त| ले गुणा करने पर व्यालोस भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्थावरोंके व्यालीस भेद हैं । पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे मनुष्य भी दो प्रकारके हैं और नारकी भी दो प्रकारके हैं । जलचर थल चर
और नभचर इन तीनोंको संज्ञो और असंज्ञीसे गुणने पर छह भेद हो जाते हैं । भोगभूमिमें 5 उत्पन्न होनेवाले गर्भज जीव थलचर और नभचरके भेदसे दो प्रकारके हैं। इव दो को पहिले छहों के साथ जोड़ने पर पाठ भेद हो जाते हैं। इन आठोंको पर्याप्त और अपर्याप्तसे गुणने पर * सोलह भेद होते हैं । जिन जलचर थलचर और नभचर जीवोंको संज्ञी असंज्ञीके भेदसे दो प्रकार कह आये हैं उन्हें सम्मूछन मानकर पर्याप्त अपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्तसे गुणा करने पर अठारह भेद हो जाते हैं। अठारह और सोलहको आपसमें जोड़ने पर चौंतीस भेद हो जाते हैं इसप्रकार तियंचोंके चौंतीस भेद हैं। आर्य मनुष्य म्लेच्छमनुष्य भोग भूमिज मनुष्य और कुभोग भूमिज | मनुष्य इन चारोंको पर्याप्त अपर्याप्तसे गुणने पर आठ भेद हो जाते हैं। इन आठोंमें संमूर्छन मनुष्य नामका भेद जोड़ देने पर नो भेद हो जाते हैं ये नौ भेद मनुष्योंके हैं । दोइन्द्रिय तेइ
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