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________________ Saksakska skskska यात् ॥४२॥ पुद्गलात्कर्मको जीयः सौख्यदुःखादिधाधनं । व्यवहारा निश्चयात्सिदः कर्माभावान्निर जनः ।। ३ ।। बड़सा मिष्टतो गौच करायकटकावणे पाठिक चेति सामान्यात्पञ्च वा तीक्षणक्षारता ४४|| गंध: स्वादि बधो ननं सुगंधेतरभेदतः। अनी । स्पर्शाश्च सामान्यात् स्निग्धलक्षौ लघुर्गरः॥ १५ ।। उष्णशीतौ दृढो भयः कोमलचति वस्तुत: । निर्वन्धो ज्ञानवान् शुद्ध) ज्योतीरूसे ऽको ध्रुवं ॥ ४६॥ यावह स्थिती देही यावाश्च लधुको गुरुः । उपसंहारावसंहारभेदाभ्यां च जिनागमें ॥ १७॥ निश्चयादिना ना स्त कषायो विक्रियाऽथवा। भारणांतिकतजस्काहारा जीषस्य चिदतः ॥ १८॥ समुद्याता इति प्रोक्ताः सप्तमः केवला भिधः । आत्मा निश्चय नयसे न मान कर सामान्यरूपसे लाल काला सफेद पीला और हरा यह पांच प्रकारका वर्ण माना है। व्यवहार नयकी अपेक्षा यह जीवात्मा पुदगलीक कर्मको कृपासे सुखी दुःखी होता है किंतु निश्चय नयकी अपेक्षा यह समस्त प्रकार के कर्मोंसे रहित है और कर्म कालिमासे रहित होने के कारण निरंजन है ॥ ४२-४३॥ मीठो तीखा कषैला कड़वा नुनखरा और खट्टा विशेष रूपसे ये छह रस | PSI माने है किंतु सामान्यसे तीखापन खारापनको एक मानकर पांच ही रस माने गये हैं। सुगन्ध और दुर्गन्धके भेदसे गंध दो प्रकारका माना है। चिकना रूखा हलका भारी गरम ठण्डा और कठोर कोमल, सामान्य रूपसे यह आठ प्रकारका स्पर्श माना है। यह जीव इन वर्ण रस गन्ध और स्पका शीसे रहित है । बन्धहीन है। ज्ञानवान शुद्ध ज्योतिरूप सुख स्वरूप और अविनाशी है ॥ ४३.४६५ * जब तक यह जीव देहके अन्दर विद्यमान रहता है तब तक देही कहा जाता है एवं संकोच और बिकास शक्तिका धारक होनेसे यह अपने शरीरके प्रमाण कभी लघु गुरु भी है । वेदना स. ! AS मुद्धात १ कषायसमुद्धात २ विक्रिया समुद्धात ३ मारणांतिकसमुद्रात • तेजससमुद्घात ५ आ* हारकसमुद्घात ६ और केवल समुदघात ७ ये सात प्रकारके समुद्घात माने है । निश्चय नयसेर यह आत्मा सातो प्रकारके समुदघातोंसे रहित है और लोक जिसप्रकार असंख्यात प्रदेशी माना है उसीप्रकार यह असंख्यात प्रदेशी है ४७-४६ ॥ स्थावरोंके व्यालीस भेद माने हैं । तथा देव Karkariwar RTHREEREYSERVIE r ls
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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