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________________ मानुष णां पशमा सना शोमापरावहा । तन्मध्यस्थमहापीठ सिंहकूमो दयभिध ॥१५॥ तन्मध्ये एहज हममष्टायुतदलदलत् श्रीमद् विमलनाथोऽसौ व्यभात्तदुपरि स्थितः ॥ १६ ॥ बिंशतीनां सहस्राण सोपानानां व्यभादरः । चतुःप्राकारका भूयो भित्तयः पञ्चराजिताः ।। १७॥ षनिशत्पतोल्पश्च जयध्यानाः सुकृताः । अप्सरोरिक्तकण्टश्च कतराना मनोहराः ॥ १८॥ जिनागोत्सेधत: प्रोचयाकारमितयः । दुवादशगुणा भाति मानस्तंभाश्च चित्विषः ॥ १६॥ चतुर्गुणा विशालाश्च चदयो राजिरेऽलकं । पद्मराग परागादिनानारत्नत्रयांशयः ॥ २० ॥ भूमेः पञ्चसहस्त्राणि धनुषां यादवम॑नि । गत्या विलोकनोयाऽथ शोभा श्रीविष्टरस्य च ॥ २१ ॥ हवीं सभा पशु विद्यमान थे इस प्रकार ये वारह सभायें थीं । सभाओंके मध्यभागमें एक सिंहकूर्म नामका सिंहासन था और उसके मध्यभागमें सुवर्णमयी कमल था जो कि एक हजार आठ पत्तोंसे शोभायमान था उसके ऊपर भगवान विमलनाथ विराजमान थे । वह समवसरण बोस हजार सीढियोंसे शोभायमान था। उसमें चार प्राकार थे और महा मनोज्ञ पांच भीतिये थीं । उनके भीतर छत्तीस गलियां थीं जिनमें कि देव गण जय जय शब्द करते थे। अप्सराओंके सुरोले कंठोसे रागोंकी छटा छटक रही थी जिससे वे अत्यंत मनोहर जान पड़ते थे। to भगवान जिनेंद्रके शरीरकी अवगाहनासे प्राकार और भित्तिओंको उचाई बारह गुणी अधिक kal थी इसी तरह भांति २ की कांतियोंसे व्याप्त मानस्तंभ भी विद्यमान थे चेदियां (मंडपशालायें ) भगवान जिनेन्द्रकी अवगाहनासे चौगुनी और विशाल थीं तथा पद्मराग आदि नाना प्रकारके - रनोंकी किरणोंसे व्याप्त थीं ॥ १२-२०॥ पृथ्वीसे पांच हजार धनुष आकाशमें जानेपर ली. समवसरणकी शोभा देखी जा सकती थी । वहांपर साढ़े बारह करोड़ बाजोंके घोर शब्द ILE होते थे इसप्रकार वहांपर समवसरणकी शोभा लोकोत्तर थी। तथा भगवान जिनेंद्रके माहात्म्यसे छहो ऋतुओंके फल फूलोंसे बृन्न लद बदा गये थे । इसप्रकार समवसरणकी शोभा और छहों . ऋतुओं के फल फूलोंकी अपूर्व शोभा देखकर और कुछ फल एवं फूलोंको राजाकी अटके लिये achhkkkkarki
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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