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म कीर्ण भमङ्गमरमंडिस ।। ॥ वेदिका रत्वसंदर्भ गर्मिताः स्वनिण मताः । ध्वजदण्द्धा विराजते त्रिशल्सहलसंरण्यकाः ॥ १० ॥ प्राकारो राजते भूयस्तारकालिलसद्यतिः । कला गानां धनं सम्यग्भूरिदानां च सर्वतः ॥११॥ नानामणिसमुश्बद्धर्भाितका हर्यसंचया । दुगोऽय स्फाटिका प्रोः पुरस्तारसंति सत्सभाः ॥ १२॥ निन्धानां समा मस्या कल्पयोपिलभापग । ब्रतिकानां ततः प्रोक्ता ज्योतिःस्त्रीणां समा पुनः ॥ १३ ॥ व्यन्तरस्त्रीसभा नागरामाणां परिपततः । भावनव्यन्तरापर्ण क्रमादुगणत्रयोरिताः ॥ १४ ॥
ऊपर नाट्यशाला विराजमान थीं जो कि किन्नरी जातिकी देवियों के नृत्योंसे अत्यन्त शोभायमान थीं - वहां पर लताओंकी क्यारियां अत्यन्त शोभायमान थी तथा वगोचे और विशाल वन भी अत्यन्त kal शोभा बढ़ा रहे थे जो कि भांति भांतिके वृक्षोंसे व्याप्त थे और चलते फिरते भ्रमरोंसे शोभायमान
॥ ६ ॥ जिनके अन्दर अनेक प्रकारक रत्नोंकी रचना थी और जो अपनी शोभासे देवोक भी चित्त चुरानेवालों थीं ऐसी वहां पर विशाल वेदियां शोभायमान थीं। तीस हजार संख्या प्रमाण kaवजाओंके दण्ड शोभायमान थे ८-१०॥ दूसरा प्रकार चादीका शोभायमान था जिसकी कान्ति
तारागणोंसे और भी अधिक शोभायमान थी तथा उसके चारो ओर कल्पवृक्षोंका वन था जो कि IS लोगोंको इच्छाओंका बहुत प्रकारसे पूरण करनेवाला था। जिनको भीत नाना प्रकारको मणियोंसे ka रची थीं ऐसे उत्तमोत्तम महल वहां पर शोभायमान थे। एक स्फटिक पाषाणका बना हुआ किला
शोभायमान था और उसके सामने सुन्दर सभायें विद्यमान थीं ॥ ११ ॥ पहिली सभामें निम्रन्य
विद्यमान थे। दूसरो सभामें कल्पवासो देवोंकी स्त्रियां थीं। तीसरी सभामें आर्यिकाये थी चौथी | ke सभामें ज्योतिषी देवोंको स्त्रियां थीं। पांचवी सभामें व्यन्तरोंकी स्त्रियां थीं । छठी सभा भवन
वासो देवोंके स्त्रियां थी। सातवी सभामें भवनवासी देव थे।आठवीं सभामें व्यन्तर देव थ । नवमी सभामें ज्योतिसी देव थे। दशवीं सभामें कल्पवासी देव थे । ग्यारहवीं सभामें मनुष्य थे और बार
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