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________________ नल ३७ KKAVARKE साधं द्वादशकोटोनां वादिवाणां महारथाः । एवमादिमहाशोनां वा नकर्मी ||२२|| दृष्ट्वा मालाकरोनीत्वा फलानि कुसुमानि | मेरुमन्दरयो मुमोचेति वदन् भृशं ॥ २३ ॥ देवः श्री किन्नरो ने समायातोऽस्ति श्रजिनः । तत्प्रभावान्नगा वंध्या जज्ञिरे फल संयुक्ताः || २४ || शोभा सर्वद्वनात संभूयेव विलोकितुं । प्रादुरासीत्सुकारितारापुष्पविलोचना ॥ २९ ॥ श्रुत्वा तन्मुखतोऽदायि तस्मै ताभ्यां धनं ॥ पुण्याटित जगन्नाथं जिनं श्रीमद राजपुत्र सुका मारो वदितु जग्मतुः पुरात् ॥ २७ ॥ महासेनासमुङ्गारसागरोत्तरपक्षभौ । अराविध्यसको सर्वसामंताविराजिती ॥ २८ ॥ ( युग्मं ) लेकर मालकार शीघ्र हो मथुरा नगरीकी ओर चल दिया उस समय मथुरापुरी के स्वामी राजा मेरु र मंदिर दोनों भाई थे । मालीने राजसभा में पहुंच कर उनके सामने फल फूलों की भेंट रखदी और इसप्रकार आनंदमयी बात सुनाने लगा स्वामिन् ! किन्नर नामके उद्यानमें भगवान विमलनाथका समवसरण आया है। भगवान विमलनाथके माहात्म्यसे जो वृक्ष बांझ थे कभी भी जिनपर फल फूल नहीं लगते थे वे इससमय फल और फूलोंसे व्याप्त हो गये हैं ॥ २० - २४ ॥ समस्त ऋतुओं में होनेवाले फल और फूलोंसे वृचों के लदपदा जानेसे यह जान पड़ता है कि नाना प्रकारके पुष्पों की लालसा से परिपूर्ण और ताराओंके समान पुष्परूपी नेत्रोंकी धारक समस्त ऋतुओं में होनेवाली शोभा ही मिलकर भग| वान जिनेन्द्रको देखने के लिये आकर प्राप्त हो गई हैं ||२५|| माली के मुखसे इस प्रकार के हर्ष समाचार सुत राजपुत्र मेरु और मन्दिरको बड़ा आनन्द हुआ । भगवान जिनेन्द्रके अन्दर अपनी भक्ति प्रगट करनेके लिये उन्होंने विशाल धन वस्त्र और अलङ्कार मालीको प्रदान किये । कामदेवके समान सुन्दर राजपुत्र मेरु और मन्दिरने यह समझकर कि भगवान जिनेन्द्रका पधारना बड़े पुण्य से हुआ है शीघ्र ही उनकी वंदनाके लिये वे नगरसे चल दिये। उस समय वे दोनों राजपुत्र विशाल お花が宿る おお
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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