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________________ 1 KAYAK SYKYK राः कोप प्राणहृत् ॥ १०६ ॥ तदा जगाद मंत्रोशो राज्यं नूनं तचैव भो। परंतु शासना राशः पालनीया प्रयत्नतः ॥ ११० ॥ freeसार कुमारोऽसौ श्रुत्वा दुर्वचनं हि तत् । भटैः पंचायुतं गुप्त मृग्यमाणो विषण्णः ॥ १११ ॥ अथ माता तदा श्रुत्वा चक्रदेति मनोभव ! दादा पुत्र ! सुवर्णाभ ? शोभाभृत् सांध्यरागजित् ॥ ११२ ॥ मार्गे गच्छन् ददर्शासौ कुमारो मारविग्रहः । नंदिश्रामं गुणारामं दृष्ट्वा कृती न्यवीविशत् ॥ ११३॥ सभामंडपमासाद्य यावत्पश्यति कौतुकं । तावद स्थितो दृष्ट (द्रदत्तो वरार्थिकः ॥ १९४॥ रहि चना, . केवल वह इसप्रकार चापलूसी करने लगा कुमार ! यह तुम निश्चय समझो कि राज्य तुम्हारा ही है- तुम्हारे प्रताप के सामने अन्य पुत्र राज्यका अधिकारी नहीं बन सकता परंतु महाराजकी आज्ञा इस समय ऐसी ही है, वह तुम्हे निःसंकोच भाव से इस समय अवश्य पालन करनी चाहिये इसीमें कुशल है ॥ १०२ ११० ॥ वलवान के सामने कुछ वश चल नहीं सकता। मंत्रीके उसप्रकारके दुर्वचन सुन कुमार श्रेणिकको बड़ा खेद हुआ एवं वे महाराज उपश्रेणिक द्वारा नियुक्त पांच (?) जासूस सुभटोंकी देख रेख में खिन्न चित्त नगरसे निकल दिये ॥ १११ ॥ माताका प्रेम विलक्षण होता है कुमारको ऐसी हालत से चले जानेपर उनकी मा इंद्राणीको बड़ा दुःख हुआ। वह माता हा कामदेव ! हा पुत्र ! हा सुवर्णके समान देदीप्यमान कांतिके धारक । एवं हा संध्याकालकी ललोईको फीकी करनेवाले कुमार ! तू कहां गया ? इसप्रकार करुणाजनक खरसे रोने लगी ॥ ११२ ॥ कामदेव के समान सुंदर शरीरके धारक कुमार श्रेणिकने मार्गमें जाते जाते एक नंदिग्राम नामका गांव देखा जो कि गुणोंका साक्षात् बगीचा स्वरूप था । वह पुण्यवान कुमार उसमें प्रवेश कर गया। गांव के मध्यभागमें राज्यकी ओर से बने सभा मंडप के पास पहुंचकर कुमार चकित दृष्टिसे | उसे देख ही रहे थे कि सामने एक इंद्रदत्त नामका वैश्य दीख पड़ा। अपने समान उसे भी पथिक जान उसे मामा बनाया और उससे इसप्रकार कहने लगे – राज्यकी ओरसे यहांपर एक दानशाला खुली हुई है उसका स्वामी एक विप्र है । आओ अपन दोनों उसके पास चलें और उससे त्रिपत्र
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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