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________________ पल Күжүүкккккккккккккккках मध्ये चिक्षेपायामशालिनः॥ ४३७॥ शिप्स्वाटिता यदा देवो दवायान् खगः । महाकामियः प्राशः क्रोजितु रामया सह ॥४३८॥ उन्छसंती' शिलां दृष्ट्वा विद्यया कोलितांच सः । उत्तर महाबाहुश्चारुचञ्चश्वकोपदक ५३९ ॥ ततो निःसृत्य वेगेन मुसली खगमीक्ष्य त । आलिलिंग गुणाम्भोधि कृतवान् माषणे मुहुः ॥४४॥ संगरोद्भ तवृत्तांतमयस्वा नीत्या वगं वलो । सोहवालोलया याति तावदन्यकथाऽभवत् ॥ ४४१॥ मधुमुक्ता भ्रामरी सापि दृष्ट्वा तं खगघुग । तन्मुनि पयामास शेलं गोवर्धनाभिध ४४२ खगेनावगता विद्या भ्रामरी भोप्रदा नृणः । ननखलया धाढ़ तां वर्षध तदा खगः ॥४४३५ अन्वयुक्त ति कासि त्वं रण्डे ! दुष्कर्मनिकल आये। अनेक गुणोंके भण्डार विद्याधर महाचूलको देखकर उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। एकदम मिलने के लिये उससे लिपट गये और वार वार वात चीत करने लगे॥ ४३४---४४० ॥ संग्राममें | जो कुछ भी बात हुई थी सारी वलभद्रने कह सुनाई। विद्याधर महाचूलको अपने साथ ले लिया । एवं वे दोनों आपसमें मैत्रीभाव रख लीलापूर्वक द्वारावतीकी ओर चले ही आ रहे थे कि यह P/ घटना उपस्थित हो गई राजा मधु द्वारा भेजी हुई भ्रामरी विद्याने जिस समय विद्याधरोंमें श्रेष्ट राजा महाचुलको - देखा शीघ्र ही उसने मारने के लिये उस पर गोवधन नामका पर्वत गिरा दिया॥ ४४१-४४२ ॥ भ्रामरी विद्याकी यह कर चोष्टा देखकर विद्याधर महाचलने समझ लिया कि मनुष्योंको भय 2 उत्पन्न करनेवाली यह भ्रामरो नामकी विद्याकी करतूत है । मारे क्रोधसे उसका हृदय प्रज्वलित | हो गया । हाथमें वज शृङ्खला लेली और उसे जिकड कर बांध कर इस प्रकार कहने लगी-अरी | दुष्ट कार्यको करनेवाली राड़ तू कौन है ? जल्दी वता नहीं तो अभी मैं तेरा नाश किये देता हूं। विद्याधर महाचूल की यह बात सुनकर विद्या भ्रामरी एकदम कप गई एवं भयभीत हो वह इसप्र| कार कहने लगी KEYWwwपहर
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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