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________________ बिमल २२६ I कारिणि । वदान्यथा करिष्यामि विग्रहं निग्रह तब ॥ ४४४ ॥ तोषावेत्य राज्ञा मधुना में बिता सती । दंतुमिच्छामि शास्त्र किलास्मिन् विक्रम नमे ||४४५॥ मुच मुञ्च महाबाहो ! बंधनान्मां प्रथाम्यहं । रवींदुपाने शक्तिः सापकर्तुं न मे त ||४४६ || मुक्त्वाऽऽ काशगामी सशीरिणा सहितोऽगमत् । यत्रास्ते माघको घोरः संगरीरंगल गरे । ४४७ || नत्वा कुशलमापृन्द्र्य बलदेवानुज' विभु जगाद जनितानदो रीतियुक्तमिति स्फुटं ॥ ४४८ ॥ शत्रु मुक्त महाविद्यालय केनापि लध्यते । नैवातो यामि येगेन विद्यासाधनतये ॥ ४४६ ॥ हे मित्रागम्यतां तूर्णं स्वयं भूरगदीदिति । वर चेति गतः शैळे होमन्ते खेचरो महान् ॥ ४५० ॥ नग्नीभूत्वा गलेधृत्वा फणि राजा मधुन वलभद्र धर्मके मारने के लिये मुझे यहां भेजा था परन्तु इसकी अलौकिक शक्ति देख कर मुझे यह विश्वास हो गया है कि मुझमें इसके मारनेकी सामर्थ्य नहीं । प्रिय विद्याधरोंके इंद्र ! कृपाकर तुम मुझे छोड़ दो मैं चली जाती हूँ । यद्यपि मैं सूर्य चन्द्रमाके गिराने की सामर्थ्य रखती हुं परन्तु मैं तुम्हारा किसी प्रकारका अपकार नहीं कर सकती ॥ ४४३ - ४४८ ॥ भ्रामरी विद्याकी यह प्रार्थना सुनकर विद्याधर महाचूलने उसे छोड़ दिया एवं जहां पर संग्राम भूमिके अन्दर राजा मधुकी सेना पडी थी वहां शीघ्र ही वलभद्र धर्मके साथ जाकर पहुंच गया || ४४६ ॥ विद्याधर महा | चूलने बलभद्र के छोटे भाई नारायण स्वयम्भू को प्रणाम किया । नारायण से मिलकर उसे बड़ा आनन्द हुआ एवं नीति परिपूर्ण स्पष्टरूपसे उसने यह कहा - राजा मधुने जो शल्यवाण आदि तीनों महाविद्याओं का प्रयोग किया है। उन तीनोंका हटाना महा कठिन है इसलिये मैं इन तीनों विद्याओंको नाश करनेवाली विद्या सिद्ध करने जा रहा हूं । आप लोग धैर्य रखें। विद्याधर महाचलकी यह बात सुन नारायण स्वयम्भू ने कहा- मित्र ! तुम्हें बहुत जल्दी लौट आना चाहिये ऐसा न हो कि तुम वहां किसी प्रकार से विव | कर लो। उत्तरमें विद्याधर महाचूल यह कह कर कि मैं शीघ्र आऊंगा तत्काल ड्रीमन्त पर्वत पर चला गया। वहां पर उसने समस्त वस्त्र छोड़कर नग्न अवस्था धारण कर ली । गलेमें लाल २ नेत्रों 1
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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