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ANKUKYA
| १८ || देशाधीशा जिताः सर्वे नमति त्वां नराधिपं । किन्तूनं विद्यते स्वामिनित्युक्त्या योषमाश्रितः ॥ ६६ ॥ त्वाहासौ नराधीशः सुमतें ! श्रूयतां वचः । राज्यं चलातिपुत्राय पुरा दत्तं मया मुदा ॥ १०० ॥ निमित्तज्ञानतो नूनमाधिपत्यं महर्द्धिकं । अधिश्रेणिकमस्त्ये चितायाः कारणं त्विदं ॥ १०१ ॥ जगी मंत्री सदा सुशः सुखं तिष्ठु नराधिप । श्र णिकं देशतो नूनं निर्गमयामि सांप्रतं ॥ १०२ ॥
समें बहुतली रानियां हैं जो कि हरिगियों के समान सुंदर नेत्रवाली हैं। बुद्धिपूर्वक बड़े प्रेमसे आपकी सेवा करनेवाली हैं। अपनी सुंदरतासे चित्त चुरानेवाली हैं। स्तनों के भारोंसे आगेको कुछ झुकी हुई हैं एवं चंद्रमा समान मनोहर मुखों की धारण करनेवाली हैं ॥ २७-६८ ॥ देशों क | स्वामी जितने राजा थे वे समस्त छापने जीत लिये जिससे वे आपको मस्तक झुकाकर नमस्कार करते हैं इस रूपसे जब आपके कोई बातकी कमी नहीं दीख पड़ती फिर नहीं मालूम होता आप किस चिंतामें भीतर ही भीतर घुले जाते हैं-कौन चिंता आपके पीछे लगी हुई है। बस इतना कहकर जब मंत्री सुमति चुप रह गया तब उत्तरमें महाराज उपश्रेणिकने कहा
प्रियमंत्री सुमति ! तुमने जो कुछ भी कहा है सब ठीक है परंतु मेरी बात सुनो- मैं पहिले प्रसन्नता पूर्वक चलाती पुत्रको राज्य देनेका वायदा कर चुका है परंतु ज्योतिषीने अपने निमित्त ज्ञानसे राज्यप्रासिके जो भी निमित्त बतलाये हैं उनसे इस विशाल राज्यका अधिकारी श्रेणिक ही सिद्ध होता है बस मेरी सारी चिंताका कारण यही है क्योंकि ऐसा होनेसे में वचन हार होता हूँ ॥६- १०१ ॥ मंत्री सुमति बुद्धिमान था। महाराज उपश्रेणिक की यह प्रात्म कहानी सुन उसने कहा- महाराज आप सुखपूर्वक रहें, कुमार श्रेणिकको मैं अभी देश से बाहिर किये देता हूँ। श्रेणिकके चलेजाने पर आप चलाती पुत्रको राज्य देकर अपने वचन की रक्षा कर सकते हैं। वस इसप्रकार राजाको प्रसन्न कर मंत्री सुमति कुमार श्रेणिकके पास गया । पहिले तो मीठे २ वचनोंमें बात चीत की पीछे कुछ चेहरेपर गौरव लाकर गंभीर वचन बोलने लगा
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