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करोमि गुणप्रियः ॥१३॥ नार्पयानि यदा राज्य चलातिसूनवे भृशं 1 याति वाक्यं मदीयं वै चैयर्थ्य जीवितं तदा ॥१४॥ वचनं हारितं येन तेन पुण्यादि हारितं एवं तं चिंतया प्रस्तं दृष्ट्वामात्यो जगाद भो । सुरत्याख्यो गुणाम्बोधिः सभ्यश्चितानिवर्तकः ।।
राजेस्तेऽस्ति च का चिंता गर्जति गजराजयः ।मदोन्मत्तामहातुगा पुष्करोगनस्पृशः ॥६॥ जधिनस्ताण्डवारंभकुशला जवशालिनः। * याहुति सुभटाग्रण्यो योद्धारश्च रणाजिरे ॥ १७॥ मृगीदशो महाप्रीत्या सेचते त्वां विवेकतः । चित्तस्तेयास्तनोदारनमिता रात्रिपाननाः
कुमार श्रेणिकको ही पाया इस लिये बड़ी भारी चिन्ता उनके हृदयमे प्रविष्ट होगई एवं वे मन ही यही मन दुःखित हो इस प्रकार विचारने लगे___में चिलाती पुत्रको राज्य देनेका पहिले संकल्प कर चुका हूँ परन्तु ज्योतिषी द्वारा बतलायेd गये निमित्तोसे राज्यका अधिकारी गुणोंका प्रेमी कुमार श्रेणक ही सिद्ध होता है ऐसी हालतमें 3 क्या करूं। यदि मैं चलाती पुत्रको राज्य म देकर कुमार श्रेणिकमो देता हूं तो मैं पहिले जो वचन दे चुका है वह व्यर्थ होता है एवं वचनके व्यर्थ होनेपर मेरे जीवनका कोई मूल्य नहीं होता क्योंकि न संसार में यह कहावत प्रसिद्ध है कि जो वचन हार हो गया वह पुण्य आदि सब ही उत्तम गुणोंका हारनेवाला हो गया-बचन हारनेवालेकी आत्मामें पुण्य आदि कभी स्थान नहीं पा सकते । इसलिये मुझे क्या करना चाहिये कुछ सूझ नहीं पड़ता ? महाराज उपश्रेणिकके प्रधान जी मंत्रीका नाम सुमति था । वह मंत्री सुमति गुणोंका समुद्र था। अत्यंत लभ्य था एवं चिंताको दूर करनेवाला था। अंतरंग चिंतासे ग्रस्त महाराज उपश्रेणिकको उसने ताड़ लिया और शांति जनक | मीठे शब्दोंमें वह उनसे यह कहने लगा .. ___महाराज ! आपके हाधियोंके समूहके समूह विद्यमान हैं । जो कि मदोन्मत्त हैं । खूब ऊंचे l ऊंच हैं एवं अपनी सूढ़से आकाशको स्पर्श करनेवाले हैं । ६२–१६ ॥ आपके बहुतसे घोड़े हाँस लगाते है जो कि अपनी चालसे तांडव नाच नाचते हैं और पवनके समान शीघ्रगामी हैं। बडे बडे सुभट और योद्धा भी आपके यहां मोजूद हैं जो कि रणके मैदानमें गर्जनेवाले हैं । आपके रण
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