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________________ BREAMMAREEREYE ॥ २६४ ।। सुभद्रा वल्लभा तस्य ब्राह्मी वा सुरसुन्दरी । कनत्कनकवर्णाभा बटूरूपा रतिप्रभा ॥ २६५ ॥ एकदा सा सुखं सुप्ता रम्यगर्भगृहे सती । आलुलोक शुभान स्वघ्नानिति कल्याणसूचकान् ॥ २६ ॥ उच्चकैः सिंधुरं दानयर्पिणं चन्द्रिकाप्रमं । रत्नाकर समद्धेलं. व्यक्तरत्नचर्य बलं ।। २६७ ।। पूर्ण णांक गतांक व सिंदं वक्तप्रवेशिनं । दृष्ट्वा तूर्यमहाध्यनिजगार तदा सतो ॥ २६८ ॥ प्रातरुत्थाय भर्तारं तत्कातिल मानिमित्तानो पालामाल नराधिपः ॥२६॥ जांय नामे ! कांते विचाम्भोजलोचने ! | वर्ष की धारक थी अत्यन्त रूपवतीथी एवं शोभाम कामदेवकी स्त्री रतिकी उपमा धारण करती थी । २६४-२६५ । एक दिन वह अपने मनोहर महलमें सानन्द सो रही थी कि रात्रिके पश्चिम । प्रहरमें उसे कल्याणकी सूचना देनेवाले कुछ शुभ स्वप्न दीख पड़े । २६६ । सबसे पहिला स्वप्न उसने हाथीका देखा जो कि अत्यन्त उन्नत था। उसके गडस्थलोंसे मद झरता था और चांदनीकी प्रभाके समान शुभ्र था। दूसरे स्वप्नमें उसने समुद्र देखा जिसकी चंचल तरंगे ऊपरको उठ रही थी। जिसके अंदर रहनेवाले रत्न स्पष्ट रूपसे दीख पड़ते थे एवं जो मनोहर था। तीसरे - स्वप्नमें अपने चिह्नसे शोभित पूर्ण चंद्रमा देखा एवं चौथे स्वप्नमें मुखमें प्रवेश करता सिंह देखा। जिस समय रानी शुभद्रा इन चारो स्वप्नोंको देख चुकी प्रातः कालमें वजनेवाले वाजोंके मनोहर | | शब्दोंसे उसकी नींद खुल गई। प्रातः कालकी नित्य क्रियाओंके समाप्त हो जानेके बाद अपने पति 2 राजा भद्रके पास आई और अपने स्वप्न कहकर उनका फल जाननेके लिये अपनी इच्छा प्रगट करने लगी। राजा भद्र निमित्त ज्ञानी थे इसलिये निमित्त ज्ञानके वलसे वह इसप्रकार उन प्रश्नोंका । उत्तर देने लगे-- ___तपे सुवर्णके समान कांतिके धारक प्रफुल्लित नेत्रवाली हे प्रिये ! तुम्हें जो स्वप्न दीख पडे हैं | - उन स्वप्नोंका फल यह है कि तुम्हारे शत्रुओंके मानका मर्दन करनेवाला और अत्यन्त बुद्धिमना ParkPatrahdhdschook meme KESH Kara n
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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