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________________ राजनराजवत् ॥ २६०॥क्षामकायो वितंद्रात्मा ध्यानो मौनी समाधिना । प्रांत गमत्सुसंन्यस्य शमवर्णमनुत्तरं ।। २६१ ॥ लय स्त्र। विमल शत्सइस श्च वराहरतिस्म सः। तावत्पर्शः समुच्छ्वासं कुर्वन कर्पूरसन्निभं ॥२६२ ।। ईषदूनं सुखं तस्य मुक्ततोऽभून्मदोज्झितं M तत योजनान्येव द्वादशव स्यवं ॥ २६३ : अथ द्वारवतीपुर्या शोभितायां धनादिभिः । भद्रनामा महीपालो बभूवारिभयप्रदः ।। उनके भक्त नहीं थे उनमें वे समान बुद्धिके धारकथे-कुवेरके समान सबको अच्छा समझते थे अथवा स्वयंभ भगवानके समान किसोमें भी राग और द्वेष नहीं रखते थे तथा राजाराजनराजवत्' जो मनुष्य राजा थे और जो अराज अर्थात् जिनके राजाकी विभूति न थी ऐसे राजासे भिन्न थे। उनके आज समूहमें वे मुनिराज अपनी दृष्टि नराज तिरस्कार रूप रखते थे अर्थात् राजा और रंक, दोनों हीको वे समान मानते थें--कर्मजनित होनेसे दोनोंको ही कल्याण कारी नहीं समझते थे। 12॥१६॥वे मुनिराज कृश शरोरके धारक थे । आलस्यसे रहित थे। ध्यानो थे और मौनी थ,अन्त समय || उन्होंने समाधि पूर्वक सन्यासके द्वारा अपने प्राणोंका त्याग किया और वे सर्वार्थसिद्धि नामके | उत्तम विमानमें जाकर उत्पन्न हो गये। १६१ । वह मित्रनन्दी मुनिराजका जीव अहमिन्द्र तेतीस | हजार वर्षों के बीतजानेपर अत्यन्त सुगंधित बहुत थोड़ा आहार करता था एवं ततीस हजार पखवाड़ोंके बीत जानेपर उसास लेता था जो उसास कपूरके समान सुगन्धित होता था। १६१ । उस सर्वार्थसिद्धि विमानके अन्दर उस अहमिन्द्रको मोक्षके निराकुलता ओर निरहंकाररूप सुखसे कुछ - ही कम सुख था क्योंकि सर्वार्थसिद्धि विमानले मोक्षस्थान केवल वारह योजनोंको ही दूरो पर था। इसी पृथ्वोपर एक द्वारवती नामकी प्रसिद्ध नगरी है जो कि धन प्रादिसे अत्यंत शोभायमान है है। उसका पालन करनेवाला भद्रनामका राजा था जो कि शत्रु ओंको भय प्रदान करनेवाला था। 2 उसको स्त्रीका नाम सुभद्रा था जो कि उसे प्राणोंसे भी अधिक प्यारी थी। उसे देखकर लोगोंको KHTTPyaavart
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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