SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परास तब भाती सुत भोमारी विट्कदानिकारकः ॥ २०॥ गावंशसमुदर्ता सागराषुगुणसागरः । बहाव केवलज्ञानो सिंहान पिष्ठ | विकमो ॥ २५॥ युग्म त्वा राबी फलां जदयों चहुमुं। गता सम सुते ताबालिस्वचिंतामणि यथा ॥ २७२ । भयानुसरलाथोऽसौ ततश्च्युस्या सुपुण्यतः । गर्भे सुभद्रिकाया प्रषितोर्णः शमिममे ।। २५३ ।। पुण्यभ्रूणेन पोडांगो जानाति नुपव| सभा । कलाकातियशोयुक्ताभिविवादपद्यमी ॥ २७ ॥ पूर्णमासावधौ राशी बाल सासूत सुन्दर । धर्मा पालिनं तं वै विधि त्वं पुत्र होगा ॥२६७-२७० ॥ तुमने जो स्वप्नमें हाथीं देखा है उसका फल यह है कि तुम्हारा पुत्र वंशका उद्धार करनेवाला होगा। सागरके देखनेसे वह गुणोंका सागर होगा । चन्द्रमाके देखनेसे केवल ज्ञानका धारक और सिंहके देखनेसे वह सिंहके समान अत्यन्त पराक्रमी होगा ॥ २७१॥ राजा भद्रके मुखसे इस प्रकार खप्नोंका फल सुन रानी सुभद्राको अपार आनन्द हुआ। वह अपनेराज महल लोट आई एवं जिस प्रकार निर्धनको चिंतामणि रत्नकी प्राप्तिसे परमानन्द प्राप्त होता है उसी प्रकार भावी पुत्रकी प्राप्तिसे रानी सुभद्रा भी परम आनन्दका अनुभव करने लगी॥२७२॥ - मुनिराज मित्र नन्दीका जीव जो कि सर्वार्थसिद्धि विमानके अन्दर जाकर अहमिन्द्र हुआ था। अपनी आयुके अन्तमें वह वहांसे चया एवं तीत्र पुण्यके उदयसे बह चन्द्रमाके समान उज्ज्वल रानी सुभद्राके गर्भ में आकर अवतीर्ण हो गया॥ २७३ ॥ क्योंकि रानी सुभद्राका गर्भ एक पुण्य गर्भ Aथा इसलिये उस पवित्र गर्भ के द्वारा उसे रंच मात्र भी पीड़ा न थी किन्तु कला कांति और यश-51 से व्याप्त वह प्रतिबिम्ब युक्त दर्पणके समान शोभायमान थी। अर्थात् वह सुभद्रा दर्पणके समान व उज्ज्वल थी और उसका गर्भ दर्पणमें पड़नेवाले प्रतिबिम्बके समान निर्मल था इसलिये उस गर्भ भसे उसे कुछ भी कष्ट न था॥ २७४ ॥ जब नौ मास पूरे होगये उस समय रानी सुभद्राने अत्यंत | सुन्दर वालकको जना और उसका नाम धर्म रक्खा गया जो कि बलभद्र पदका धारक था॥२७५।।
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy