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पहायक
WEEKE KEPharelu
लसा मर्श । तियैवस्त भवत्येव नानावुःखसमन्विताः॥ १०॥ नातिलोमा विकाढ्या दयावानरता ध्रुवं । अन्यनिदान कुर्वति मामवास्ते भयंत्यहो ॥ ११॥ सत्यशोवती नारी कामसंतोषिणी शुभा। स्थिरांत:करणा धर्मबुद्धिः सा नरतां प्रजेत् ॥ १६२।। प्रायो रामासु संसक्तश्वपलः कामधेष्टया। धूर्तश्व लोसमन्धेषी स्त्रीत्वं स पुरुषो प्रजेत् ॥ १३ ॥ पशु नां नासिकाकर्ण च्छदको दुष्ट मानसः। संस्कारी याति पदत्यं विभोगत्वं नराधमः॥१६४॥ जीवन त्रासयत्येष नीद्वान् मज्यते च यः । विषघाती महासेनाः | स नरोऽल्पायुषी भवेत् ॥ १२५ ॥ जन्तुरक्षणसंलीनः सो पकृतिकारकः । यः परेषां शुभाकांक्षी पहायुधों भवीति सः ॥ १६६ अनेक प्रकारके मुःखोंका सामना करना पड़ता है। १८६-१६०॥ जो महानुभाव विशेष लोभी नहीं होते विवेकी दयावान और दानी होते हैं तथा किसीकी भी निन्दा नहीं करते वे महानुभाव
मनुष्य योनिके अन्दर जन्म धारण करते हैं ॥ १६१ ॥ जो स्त्री सत्य बोलने वाली और शौच धर्मka का पालन करने वाली होती है । विशेष कामिनी न होकर संतोष रखनेवाली होती है। शुभ होती है - जिसका अन्तःकरण चल विचल न होकर स्थिर रहता है तथा सदा जिसकी बुद्धि धममें दृढ़ रहती है।
है वह स्त्री अपने स्त्रीलिंगको छेदकर पुरुषलिंग धारण करती है ॥ १६२ ॥ जो पुरुष स्त्रियोंमें | विशेष आसक्ति रखता है। चंचल होता है सदा कामचेष्टाओंके करने में ही परम आनन्द मानता है। धूर्त होता है और स्त्रियोंकी सूध लगानेमें रहता है वह पुरुष नियमसे दूसरे भवमें स्त्री होता है॥ १६३ ॥ जो नीच पुरुष पशुओंके नाक कान आदि अङ्गोको छेदता है । सदा मनमें दुष्टभाव रखता है और निरन्तर अपने शरीरका संस्कार करता रहता है वह नीच पुरुष संसारमें नपुंसक होता है एवं नपुंसक होनेसे वह किसी भी प्रकारके भोगोंको नहीं भोग पाता ॥१९४॥ जो मनुष्य जीवोंको अनेक प्रकारके त्रास देता है । पक्षियोंके रहनेके घोसलोंको तोड़ता फोड़ता है एवं - विष खाकर प्राण तजता है वह अत्यंत पापी मनुष्य थोड़ी आयुका धारक होता है ॥ १६५ ॥ जो महापुरुष सदो जीवोंकी रक्षामें तत्पर रहता है। दूसरोंका सदा उपकार करता रहता है और दूसरे 7 जीवोंका शुभ हो विचारता रहता है वह मनुष्य विशेष आयुका धारक होता है ॥ १६६ ॥ धनके