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को भविष्यति । लग्नं विचित्य च ' स्वामिदृष्ट' शुभाश्रितं ॥४२॥ योगाधियोगिकः प्राणु सामंतनायक शर्कराकुमको देयः प्रत्येक विमलया Pा सर्वसत्तुजा ॥ ८३ ॥ कुभमन्येन गोधन य: सम्म प्रति नेष्यति । राज्यमा विजानीयाः प्रांशुलं गलविविध ॥ ८४ ॥ओसजेः सलिलैः
कृत्वा भृत्वा कुभ समेष्यति । राज्यमा विज्ञानीयास्तृतीयांक निगद्यते ॥ ८५॥ नानाव्यंजनसरोज्यं पूपापायससंयुतं । कारयित्वा सुतान सन्नेिकपंकी निवेशय ८६ ॥ शुनकान् मोचयः पश्चात्तानिवार्य भुनक्ति यः! राज्याधिपं त्वकं विद्या रूपनिर्जितमन्मथं ॥८॥ दहामाने पुरै यस्तु छत्रचामरविष्टरं । नीत्वा प्रयाति राजा सपंचमार्कसमुच्यते ॥८८ स्वज्जलालुकपर्याप्सान करण्डात् संविधायचा कौर.
प्रिय ज्योतिषी । तुम अनेक प्रकारकी कला और कौशलोंके पारगामी हो कृपाकर बताओ तो कि मेरे इन समस्त पुत्रोंमें राज्य प्राप्त करने वाला कौन पुत्र होगा ? क्योंकि जो बात लग्न विचारकर देखी जाती है और जो स्वामी भगवान केवली द्वारा देखी जाती है वह शुभजनक | अर्थात् ठीक ही निकलती हैं ।।८०--८२॥ वह ज्योतिषी समस्त ज्योतिषियोंमें मुख्य था। महाराज। उपश्रेणिकके वैसे वचन सुनकर वह कहने लगा-हे अनेक सामन्तोंके स्वामी राजा ! मैं राज्यकी , प्राप्तिके कुछ निमित्तोंका वर्णन करता हूँ तुम ध्यान पूर्वक सुनो
महाराज । राज्यकी प्राप्तिका सबसे पहिला निमित्त यह है कि आप अपने सब पुत्रोंको बुलाइये और उन्हें अपने अपने घर ले जाने के लिये एक एक घड़ा दीजिये जो प्रतापी पुत्र उस घड़े |
को अपने शीशपर न रखकर किसी अन्य मनुष्य (चाकर) के शिरपर रखवाकर अपने घर ले जाय, 5 समझ लो राज्यका प्राप्त करने वाला वही है और वही बलवान और शत्रुओंका वश करनेवाला है !
अन्य नहीं ॥८३-८४॥ दूसरा, राज्यकी प्राप्तिका निमित्त यह है कि आप अपने समस्त पुत्रोंको । बुलाकर प्रत्येकको एक एक कोरी पड़ा दीजिये और यह आज्ञा कीजिये कि हर एक कुमारको ओसके । जलसे भरकर घड़ा लाना होगा जो प्रतापी कुमार घडाको ओससे भरकर ले आवे समझ लो वही । राज्यको धुरा धारण कर सकता है अन्य नहीं। राज्यकी प्राप्तिका तीसरा निमित्त यह है कि पूआ | खीर आदि नाना प्रकारके व्यंजनोंसे महा मिष्ट भोजन आप तयार कराइये। जिस समय भोजन ||
pradesYAYarkarsh