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________________ लासश्च चुंबनरभणस्तथा। रेभे राजा रतिक्रीडापर्धते स्वक्ने गृहे । ७८॥ पुत्रो जातस्तयोः कोडाशक्तयोर्लक्षणान्वितः । चलातीत्यभिधो वालो वध वालचंद्रवत् ॥ ७६) यौवनान्यो यहा जातश्चितयामास भूपतिः । राज्यं हि धेणिकायव वरो दत्तोऽस्मकै मया ॥८॥ संत्रित्येत्यं निमित्तज्ञ समाहृय जगावित । भो भो निमित्तसंशानिन् कलाविज्ञानपारग ! ॥ ८१ ॥ एतेषां मम पुत्राणां राज्यभाक बन कर राजा यमदण्डकी बात उन्होंने स्वीकार कर लो। सुन्दरी तिलकवतीके साथ उनका विवाह ! हो गया। राजा यमदण्डकी सेनासे वेष्टित हो बड़े ठाट वाटसे वे अपने राजधानीकी ओर चल दिये एवं अपने नगरमें प्रवेश कर गये ॥७३-७६५ अपने महाराजकी फिरसे प्राप्ति दुर्लभ जान नगर निवासियोंको बड़ा आनन्द हुआ। महाराजकी प्राप्तिकी स्तुशीमें राजगृह नगर ध्वजा पताका ) तोरण आदिसे सजा दिया गया एवं समस्त सामंत मन्त्री आदिने भगवानकी पूजा अभिषेक आदि मंगलीक कार्य किये ॥७॥ राजमहल में प्रवेश कर राजा उपश्रेणिक रतिकीडाले योन्य पर्वत वगीचे और महलोंमें रमणी तिलकवतीके स सानन्द भोग भोगने लगे। कभी तो महाराज उपश्रेणिकने नानाप्रकारके हाव भाव और विलासोंके साथ भोगोंके सुखोंका अनुभव किया एवं कभी कभी वे चुम्बन और आलिंगनोंसे भोगोंका रस आस्वाटने लगे ॥७७-७८॥ लानाप्रकारकी जा IN क्रीडाओंमें आसक्त उन दोनोंके भोगोंका फलस्वरूप एक पुत्र हुअा जो कि राजलजसे युक्त याना PM'चलाती, इस शुभ नामका धारक था एवं वह पुत्र वाल चन्द्रमाके समान दिन दिन बढ़ने लगा। ७६॥कामांध महागज उपश्रेणिक चिलाती पुत्रको राज्य देनेका वायदा कर चुके थे इसलिये K/ जिस समय कुमार चिलाती युवा हो गया महाराज उपश्रेणिकको चिन्ताने अपना स्थान बना 12 लिया। वे मन ही मन सोचने लगे कि सब पुत्रोंमें कुमार श्रेणिक राज्य के योग्य है इसलिये हक प्रांत तो राज्य श्रेणिकका ही है परन्तु मैं चिलाती पुनको उसे देनेका वायदा कर चुका है ऐसी दशामें क्या करू? बहुत कुछ सोच विचारके वाद महागज उपश्रेणिकने ज्योतिषी बुलाया और उससे इस प्रकार कहने लगे--- КүржүKYKYKYkfkeykkerke HEREKksiaaaharash
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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