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॥१५४ मतानित्यावर्गणा:-ऋाणां च मुनीनां च यतीनां च समर्हस्मृतिानमयो मावतिभंगवतो मत १५५ ॥
गाईस्थ्योल्पनपाएभ्य प्रणाशः पूजनादिभिः । अन्यथा वज्रलेपः स्यादतो मागों न प्यते ।। १५६ ॥ मही सांप्रतमगाखल IK भदभगवदनुचर्यच्च तदच्छमनुस्मृत्य :वयं भगवतुः सानन्दाः स्मोऽतोऽनुबादेन :रसा तमिति गृहिणामहण
भगवान जिनेंद्रका सिद्धांत है कि ऋषी मुनि और यतियोंकी भलेप्रकार पूजन उनके गुणोंका स्म-17 बरण ध्यान आर उत्तम परिणामोंसे उन्हें नमस्कार करना चाहिये। इसी कारण जल धारासे भग
वान जिनेंद्रकी पजा करना अनुचित नहीं ॥ १४४-१५६ ॥ पुनः शंकाPM बड़े ऋषि जो कि रात दिन घोर तपोंको तप पुण्य संचय किया करते हैं यदि वे जलसे भग
वान जिनेंद्रकी पूजा करें तब तो यह मान लिया जा सकता है कि जलसे पूजन करने पर जो पाप | होगा उसे मुनि गण नष्ट कर सकते हैं परन्तु गृहस्थ जो कि रात दिन पापोंका संचय करते रहते है र्याद वे जलसे भगवान जिनेंद्रकी पूजा करेंगे तो और भी पापका बोझा उनपर लदेगा उनका
पापोंका भार हलका नहीं हो सकता इसलिये हिंसा जन्म पातकके भयसे जब मुनिगण जलसे IN पूजा नहीं करते तब गृहस्थोंको तो जलसे पूजा करनी ही नहीं चाहिये इसलिये जलसे पूजाकी जो
पुष्टि की गई है वह मिथ्या है ? उत्सर, मुनिगण समस्त प्रकारके आरम्भके त्यागी हैं इसलिये शास्त्र में भगवानकी पूजा लिये उन्हें आज्ञा नहीं किंतु गृहस्थ घरमें फसा रहने के कारण अनेक प्रकारके आरंभोंको करता रहता है और उन आरंभोंसे अनंते पापोंकी उत्पत्ति होती रहती है। उन पापोंका नाश भगवान जिनेंद्रकी पूजा आदिसे ही होता है इसलिये गृहस्थ अवस्थामें उत्पन्न | होने वाले पापोंकी शांतिके लिये भगवान जिनेंद्रकी पजा करना आवश्यक है। यदि पूजन आदि - उन पापोंकी शांति न की जायगी तो वह पाप बज पाप हो जायगा उसका नाश जल्दी नहीं हो
१ । बहिरंगतोऽतरंगविधिलवान ।
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