SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मल ०४ VYAYAYA YAPKPYR ॥ १४५ ॥ भृगरा जिसमाश्वास पीताम्भोजोममा पूरितस्वर्णभृंगारप्रणालजलधारया ॥ १४६ ॥ ( युग्मं ) अहो एकस्मिन् पयोि दावसंख्याता जेतवः प्रण्यगदिवतागमैरह द्वषयसंभूतैश्च तर्हि धर्मार्थं स्थूलजखधारमा समर्पणं कथं संजाघटीत्याश' क्याहुर्निंगमाः ॥ १४७॥ गणास्तानि याहुः ईोतपुण्येन श्रोते पापराशयः । मशेनैकेन घहरच काण्डनीव महागमाः | १४८|| अहो प्राचीन इसि भूयस्यपि सति युमरसंख्यजंतुमयपयोधारोन्द्र साहोराशिनिरयाद्विनास्पदं न विदध्यादित्याहुराशक्य निगमाः ॥४६॥ गणास्तः नित्याहु:देखते नष्ट हो जाती हैं ऐसा शास्त्रका वचन है इसलिये जलकी धारासे भगवान जिनेंद्र की पूजा करना अनुचित नहीं । शंका आत्मा के साथ प्रथमसे ही अगणित पापका संबन्ध विद्यमान है यदि असंख्यात जीव स्वरूप जलकी धारासे भगवान जिनेंद्र की पूजा की जायगी तो उससे जायमान पापोंका समूह नियमसे नरक ले जायगा इसलिये जलकी धारा से पूजा करना ठीक नहीं है ? उत्तर, जिसप्रकार संपूर्ण चन्द्रमा में थोड़ीसी कलंककी रेखा कुछ भी हानि नहीं करती - चंद्रमा स्वरूप ही मानी जाती है उत्तोपकार जलकी धारासे भगवान जिनेंद्र की पूजा करनेपर अनंते पुण्य परमाणुओं का बन्ध होता है उनके सामने जलकी धारासे पूजन करनेपर जो पाप होता है वह नहीं सरीखा होता है। विशेष पुण्य परमाणुओं के सामने थोडीसी पाप परमाणु अपना बल नहीं दिखा सकती अर्थात् वे पुण्य स्वरूप ही परिणत हो जाती हैं ऐसा शास्त्रका उपदेश है इसलिये जलकी धारा से भगवान जिनेंद्रकी पूजा करना किसी प्रकारका अनर्थ नहीं कर सकता। फिर भी शंका afrat छोटी चिनगारी भी जिनकी डालियोंपर भांति २ के पुष्प खिल रहे हैं ऐसे महामनोहर हरे वृक्षोंसे मंडित वनको देखते देखते खाख कर डालती है उसीप्रकार जलकी धारासे पूजन करनेपर उससे जायमान थोड़ासा पाप भयंकर अनर्थ कर सकता है इसलिये पापको उत्पन्न - 都卵味剤で参
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy