________________
ल
३६
REKYLER
PKPKVSY
I
घयेति भो ! | रंग कालाभयोः सर्वराजदन्त्रो पहतोः ॥ १२७ ॥ देवी तथास्त्विति प्रोक्त्वा जगाम स्वीयमंदरम् । प्रातर्जात महोरगे राजपुत्राः समाटिताः ॥ ११८ ॥ नानावादिनिर्घोष तंत्रीकंठसमुद्भव | रागं गीतं तदा श्रुत्वा कन्या धाक्षिकयागता ॥ ११६ ॥ यावत्यश्यति भूपालान् किरीदस्तव काबलोन् |] कंतु वैशसट गारान् तावद्योगी समाययौ ॥ १२० ॥ अंगभस्मजटाजूटदुर्निरीक्ष्योऽस्थिमालधृत् । करकंबुईसन्नीषनेत्रोऽथ दंतुरः ॥ १२१ ॥ आगत्य परिषन्मध्ये स्थितो वज्रासनालये । सुरुद्राक्षमहामालः स्थिरः कीनाशसंभवः ॥ १२२ ॥ अथो दृष्ट्वा तर्क कन्या हत्यापात योगिन । स्वीकर्तुं राजभिः जो यच कालके समान हो । समस्त राजाओंको नष्ट करनेवाले हो और पाषाण सरीखे दृढ़ हो । ॥ ११२-११७ ॥ देवीने 'तथास्तु कहकर अपने निवासस्थान की ओर प्रयाण किया। योगीको भी बड़ी हुई प्रातः काल होते ही समस्त राजकुमार स्वयंवर मंडप में आकर अपने अपने स्थानोंपर बैठ गये । अनेक प्रकारके वाजे वजने लगे। तंत्रियों के कंठों से जायमान भांति भांतिके राग और गीत छिड़ने लगे । कन्या परम सुन्दरीने भी वाजोंकी आवाज और गाने सुने और वह धायको लेकर स्वयंबर मण्डपमें आगई ॥ ११८ --- ११६ ॥ जिनके मस्तकोंपर भांति भांति के मुकुट शोभायमान हैं। जिनकी चेष्टा कामदेव सरीखी है और जो नाना प्रकारके श्रृंगारोंको किये हैं ऐसे उन राज कुमारोंको वह कन्या देख ही रही थी कि उसी समय वह योगी आया ॥ १२० ॥ वह साधु में भवति रमाये था। उसके जटाके बाल बिखरे थे इसलिये वह बड़ा भयंकर जान पड़ता था । तथा हाडोंकी माला लिये था उसके हाथमें शंख था। हंस रहा था। उसके नेत्र कुछ रक्त थे और बड़ े २ दांत बाहर निकले हुए थे । स्वयंवर मण्डपके मध्यभाग में आकर वह बचके समान दृढ़ आसन से बैठ गया। हाथमें रुद्राक्षकी माला धारण करली एवं साक्षात् यमराज सरीखा जान पड़ता था ॥ १२० – १२२ ॥ मन्दार पुष्पों की मालासे विराजमान योगीको देखकर कन्या परम सुन्दरी बड़ी खुशी हुई और उस योगीको वर बनानेके लिये उसकी ओर बढ़ने लगे
२२
VPKPAYKP
LAYAYAY