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________________ •ELUATI -momments सेव निषिद्धोत्थाय कोपतः ।। १२३ ॥ हन्यता हन्यता दुष्टः झापाली करुणातिगः । अल्पस्येवं नपाः केचित्ताड्यति बचः शरैः ॥ १२५ ॥ चुकीपेभ्योऽगममा स मत्या प्रत्यूहमायतं । राजभ्यो राजवक्त्रेभ्योऽखिल्यालयो नु वा ।। १२५ ॥ यदो. त्थाय महाशवं धमतिस्माशु कोपतः । तदा देवीरिती यक्षो समागम्य विकलातुः ॥ १२६ ।। के हकार'प्रचक्राणौ स्फोटयतो नु पर्वतान् । उन्नताजनागौ नु दीर्घदंतौ महाभुजौ १२७ || ताभ्यां च नग्नरूपाय हताः पादप्रहारतः । सर्वे भूपालसाम'ar: पौरा किष्किंधपादयः ।। १२८ ।। अत्रांतरे नभोगामी गच्छन कश्चिन्न पात्मजः । जहार मनसा दुष्टा' किन्न कुर्वति विग्रह । १२६ ॥ द्विजिताः खरतराः सेा भविमृश्शाकरा नराः । कार कारमनर्थतेनिशं जीवति गृध्नयः ।। १३० ॥ असंभाव्यमतो परन्तु राजा लोगोंको यह बात पसन्द न आई उन्होंने शीघ्र ही उसे रोक दिया । राजाओंके द्वारा कन्या परम सुन्दरीको इसप्रकार रुकता देख योगीको बड़ा क्रोध आया वह क्रुद्ध हो एकदम अपने आसनसे उठ खड़ा हुआ। योगीकी यह चेष्टा देख स्वयंवर मण्डपमें विद्यमान समस्त राजाओंमें खल वली मच गई सबोंके मुखसे ये ही शब्द निकले कि यह योगी बड़ा दुष्ट और निर्दयी है इसे मारो मारो तथा बहुतसे राजा लोग उस योगीको कुबाक्यरूप वाणोंके प्रहारोंसे वेधने लगे ॥ १२३–१२४ ॥ वह सन्यासी समस्त राजाओं पर एकदम गुस्सा हो गया। राजा और राजा लोगोंकी मखोकी चेष्टाओंसे उसे यह जान पड़ने लगा कि साक्षात प्रलय काल उपस्थित हो गया है इसलिये अपने ऊपर एक वलवान विन्न उपस्थित होता देख जिस समय खड़े होकर उसने महा- 13 5 शंख बजाया उसीसमय देवीके द्वारा भेजे हुए दोयक्ष सामने आकर गर्जने लगे वे दोनों यक्ष केंकार | हुकार शब्दोंके करने वाले थे। पर्वतोंके फोड़ने वाले थे। अञ्जन पर्वतके समान ऊंचे थे। विशाल दन्त और विशाल भुजाओंकेधारक थे । नग्नरूपके धारक उन दोनों यक्षोंने अपने पादोंके प्रहारोंसे समस्त रोजा और किष्किंधा पुरीके राजा आदि समस्त पुर वासियोंको तितर बितर कर डाला || ॥ १२५–१२६ ॥ उसी समय एक विद्याधर आकाश मार्गसे जा रहा था। कन्या परम सुन्दरीको
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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