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विमल M
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पप्रच्छ परमानंदवाक्लेलितविग्रहः रामा प्रोक्त च तद्वतं विचित्रा कर्मणां गतिः ॥ ६॥ पाहोगिको घोमान् कोऽसि त्वं वससि क्व च । स्वोयराज्यप्रणाशत्वादत्रा वसतिर्मन ।। ६८ 1 एहि राजन् ! ममागरे देह पीड़ासुशांतये । गत्वाचारं समालोक्य | प्रोवाच क्वनं क्षितीट् ॥ ६॥ नो भुतियागार स्यात्रारपरिवजिते । तदाह यमदंडाख्यः अणताइचनं मम । तिलकादिवती पुत्रो सामुद्रलक्षांकिता। पथ्यं विधाय सदस्या भोजयिष्यति भूपते ॥ १ ॥रंज भूपतिर्भस्या तस्या रूपेण मोहितः । ययाचे तां यमं भूपं द्विजश्रीराजितोत्सभः (य.)॥ १२॥ तदापासोद्यमो प्रोल्पा भूपाल पालितजं । तव सुदरोग्रातो विद्यतऽयंतरू रवान् । नीचसे ऊंचापन और ऊंचेसे नीचापन होगा किसोको जान नहीं पड़ता। अंतमें महाराज उपश्रे-: णिकने कहा
प्रिय महानुभाव ! तुम कौन हो और तुम्हारा निशसस्थान कहां है ? उत्तरमें भिल्लराज चमइंडने कहा—राजन् ! जिस समय मेरा राज्य मेरे हाथसे चला गया और मैं राज्यरहित हो गया। तबसे में इसी बनमें आ गया है और यहींपर रहने लगा हूँ । भयंकर गढ़ेमें गिरनेसे आपका । शरीर पीडायुक्त हो गया है कृपाकर इस पीड़ाकी निवृत्तिके लिये आप मेरे घरपर चलें। भिल्लराजकी प्रार्थना राजा उपश्रेणिकने मंजूर करली । वे उसके साथ चले आये । घरमें आकर जिस | समय उन्होंने यमदंडका आचार भीलों सरीखा देखा उन्हें वह सहन न हो सका इसलिये शीघ्र ।। ही उन्होंने यमदंडसे कहा-भाई यमदंड! तुम्हारा घर स्वाचार-श्रावककी क्रियायोस रहित है में ।
तुम्हारे घरमें भोजन नहीं कर सकता। उत्तरमें यमदंडने कहा—यानाथ ! यदि यही वात है तो। 7. आप मेरी बात सुने- । मेरे एक तिलकवती नामकी पुत्री है। सामुद्रिक शास्त्रमें कहे गये शुभ :
लक्षणोंसे युक्त है। श्रावकोंके घरमें जैसी भोजन क्रिया प्रचलित है वैसा ही भोजन बना सकती। है इसलिये भक्तिपूर्वक वह आपके अनुकूल भोजन बनाकर आपको जिमा सकती है। महाराज उपश्रेणिकने यमदंडकी यह प्रार्थना स्वीकार करली एवं थे उसके हाथका बना महामिण्ट भोजन । करने लगे ॥ ६४–७१॥ वह कन्या तिलकवती परम सुंदरी थी । उसका सौंदर्य और गुण देख।