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________________ नल० २३४ सतययय यय य पुष्पमविलोकांच्च शुक्लरेश्यो मृदुत्वतः । चंद्रान्वेषणतः कांते शांतः परमतत्त्ववित् ॥ ४ ॥ नभोमणिसमालोकात्प्रतापको चिष्टपः । मीनदर्शनतः प्राज्यराज्यभागो सुरार्चितः ॥ ४१ ॥ घटालोकतो मेरौ स्नानं लप्स्पति शकतः । तडाग. दर्शनाद्वामे सर्वलक्षणलक्षितः ॥ ४२ ॥ समुशलोकतो धीरध्वानो गंभीरशासनः । अगाधो भोगिदेवानामवाङ्मनसगोचरः ।। ४३ ।। सिंहासनसमालोकालोके समर्हितः । विमानदर्शनात्स्वर्गादागा मिष्यति है प्रिये ॥ ४५ ॥ फणींद्र सदनालोकान्नागलोक समर्हितः । रत्नपुंजस्मयह है कि वह चंद्रमा के समान लोगोंको आनंद प्रदान करनेवाली शांतिका धारक होगा और परमतत्त्वका जानकार होगा। सूर्यके देखनेका फल यह है कि वह पुत्र अपने प्रतापसे समस्तलोक को बश करेगा। मछलियोंके देखनेसे वह उत्तम राज्यका भोगनेवाला होगा और देवगण उसकी पूजा करेंगे। दो घड़ोंको जो स्वप्नमें देखा है उसका फल यह है कि उसेपुन्त्रका अभिषेक स्वयं इन्द्र मेरु पर्वतपर करेगा। तालाबके देखनेका यह फल है कि वह समस्त शुभलक्षणोंसे शोभायमान होगा समुद्र के देखनेसे वह पुत्र दिव्य ध्वनिका स्वामी होगा। उसकी आज्ञा गंभीर होगी योगो होगा और देवगण उसके गुणोका पता न पा सकेंगे एवं उसका चिदान दस्वरूप वचन और मनके अगोचर होगा अर्थात् न वचनसे कहा जायगा और न मनसे विचारा जा सकेगा। स्वप्नमें जो सिंहासन देखा है उसका फल यह है भूलोकमें सब लोग उसकी पूजा करेंगे। विमान देखनेका यह फल है। कि वह स्वर्गसे चयकर तुम्हारे गर्भमें आवेगा । नागकुमारोंका जो भवन देखा है उसका फल यह है कि समस्त नाग कुमारगण उसकी पूजा करेंगे। रत्नोंका पु ́ज देखनेसे वह करोड़ों सूर्योकी प्रभासे भी अधिक प्रभाका धारक होगा एवं स्वप्नमें जो सूर्य देखने में आया है उसका फल यह है कि वह तुम्हारा पुत्र समस्त कर्मोंका नाश करनेवाला होगा । चिदानंद चैतन्यस्वरूप होगा मोक्षलक्ष्मीका स्वामी होगा एवं अत्यंत बुद्धिमान होगा अपने स्वामी राजा कृतवर्मासे इसप्रकार स्वप्नों का फल सुनकर माता जयश्यामाका हृदय आनंदसे उछलने लगा । एवं उस समय पुत्रकी उत्पत्ति यतया
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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