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मिताली । त्रणां स्नेह विकासाथ भर्तु र्मान्यं भवेदिति ॥ ३४ ॥ व्यक्तीकृत्य परं प्रेम जगाद निजस्वामिनं । हे नाथ पश्चिमे यामे स्वप्ना दृष्टास्तु षोडश || ३५ || गजादिज्वलनां तान् प्रोक्त्वा प्रोवाच सदिगरे । एतेषां किं फल स्वामिन् ? बदत्यं करुणालय | ३६ | तां जगाद नराधीशः शृणु त्वं तत्फलं मुदा । अंभोजलोचने बाले नितंबभरमंधिरे ॥ ३७ ॥ दृष्टो गजो यतः शुभस्तव पुत्रो भविष्यति । कुलानंदकरो गौश्च सर्वभारधुरंधरः ॥ ३८ ॥ सिंहदर्शनतो नूनं विक्रमी व त्रिलोकजित् । रमादर्शनतो देवि त्रैलोक्परमाश्रितः ॥ ३६ ॥ | इस प्रकार सन्मान पाकर बड़ी खुश हुई और आनन्दका अनुभव करने लगी। बात भी ठीक है अपने स्वामी द्वारा किया गया सन्मान ही स्त्रियोंके लिये विशेष आनन्दका कारण होता है ॥ ३४ ॥ कुछ समय कानंदानुभव के बाद महारानी जयश्यामाने उत्कट स्नेह व्यक्तकर इसप्रकार अपने स्वामोसे
कहा :
वयस्क
प्राणनाथ। रात्रि के पश्चिम भागमें मैंने सोलह स्वप्न देखे हैं एवं पहिले स्वप्न हाथीसे लेकर अंतिम स्वप्न अग्निपर्यंत समस्त स्वप्न कह भी सुनाये एवं यह प्रार्थनाकी कि इन स्वप्नोंका फल क्या होना चाहिये ? हे कृपाके सागर स्वामी आप कृपाकर कहें ॥ ३५ --- ३६ ॥ रानी जयश्यामा सोलह स्वप्नोको सुनकर महाराज कृतवर्मा बड़े प्रसन्न हुए और वे यह कहने लगे - हे कमल नयनी और नितंबोंके भारसे मंद चाल से चलनेवाली प्रिये ! मैं अनुक्रमसे स्वप्नोंका फल कहता हू' तुम आनंदपूर्वक सुनो- तुमने जो स्वप्न में हाथी देखा है उसका फल यह है कि समस्त agart नंद प्रदान करनेवाला तुम्हारे पुत्र होगा। बैल जो द ेखा है उसका फल यह है कि वह समस्त भारको धारण करनेवाला होगा । स्वप्न में सिंहके देखनेका यह फल है कि वह सिंह समान पराक्रमी और तीनों लोकोंका विजय करनेवाला होगा । लक्ष्मीके दखनेका यह फल है कि वह तीनों लोककी लक्ष्मीका स्वामी होगा । पुष्पमालायें जो दो देखी हैं उनका फल यह है कि वह पुत्र शुक्ल लेश्याका धारक अत्यंत कोमल चितवाला होगा । चंद्रमाके देखनेका फल