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________________ N मिल न्धेषात्कोटिसूर्याधिकप्रमः॥४५॥ विभावसुसमालोकारकर्मध्वसी च चिन्मयः । मुक्तिसामाज्यो रहि ! भविता ते सुतः सुधीः ॥ १३५ P॥५६ ।। एव सुरवा महादेवा दयानरमाय सा । तुज लायसन्माना त्सानंदा संययो गृहं ॥४७॥ ज्येष्टे कृष्णदशम्यां च ऋझे भाद्रपदे ध्रुध । उत्तरादिमके स्वर्गासहस्रारेंच नाममा || ४८॥ च्युत्वावतरितो गर्भ राशया देवो विशोधित । देवाश्चतुर्णिकाया ज्ञात्वा स्यासनकंपनात्॥४६॥ गर्भायातं सुराधीशं गर्भ कल्याण मा दिण' चक्रानंदतः सर्वे सत्साहाः संप्युः पदं ।। ५०॥ पटपंचाशत् कुमार्यच सेवते शाक शासनात् । जिनांयां जगदानंद दायिनीं वै यथा ययं ॥ ५ ॥ काचित् गारयामास पट्टकूलादि वस्तु के समाचार सुनते ही उसे यह जान पड़ने लगा मानो साक्षात् पुत्र ही प्राप्त होगया है। वह बड़े आदरसे अपने मंदिरमें आ गई एवं अत्यंत आनन्दका अनुभव करने लगी॥ ३७–१७ ॥ कदाचित् जेठ कृष्णा दशमीके दिन जब कि उत्तर भाद्रपद:नामका शुभ ननत्र विद्यमान था 1. वह सहसारेंद्र नामका दव अपने निवासस्थान स्वर्गसे चला एवं दवांगनाओं द्वारा भलेप्रकार संशोधित माता जयश्यामाके गर्भ में आकर अवतीर्ण हो गया । वह सहसारेंद्र भगवान विमलनाथ का जीव था इसलिये उसके गर्भमें आते ही चारों प्रकारके दवोंके आसन कंपायमान हो गये | जिससे उन्हें मालूम होगया कि भगवान विमलनाथ माता जयश्यामाके गर्भ में आकर अवतीर्ण हो गये हैं इसलिये वे सानंद उनके गर्भकल्याणकका उत्सव मनाने के लिये चल दिये एवं आनंद | पूर्वक उत्सब मनाकर अपने अपने स्थान लौट गये ॥ ४५–५० ॥ सौधर्म इन्द्रही आज्ञासे, छप्पन कुमारियां तीनों लोकके जीवोंको आनन्द प्रदान करनेवाली माता जयश्यामाकी यथावसरभक्तिपूर्वक सेवा करने लगीं ॥५१॥ उनमें कोई कोई कुमारी नाना प्रकारके बस्त्र आदि पदार्थोंसे माताका शृंगार करने लगीं। कोई कोई कुमारी स्लान विलेपन आदिसे माताके शरीरको सुगंधित करने में लगीं। कोई कोई प्रतिसमय माताके पैर दवाने लगीं। कोई माताको हिडोलेमें बैठाकर मुलाने | लगीं। कोई नाना प्रकारके व्यंजनोंसे व्याप्त एबं रूप और लावण्यका बढ़ाने वाला महा स्वादिष्ट । ЖЖҮЖҮЖҮЖүкккккккккккккк
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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