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________________ . . नैव शुद्धयति । पश्चिणोऽपि न भक्षति कथं भुति मानवाः ॥ ७४ । घटीवये स्थिते शेष वासरेऽदंति मानुषः । अन्यथा राक्षला एव पलास्वादनतत्परः ॥ ७५ ॥ त्रिसंध्यं येतु भुजति निर्धना रोगिणो नराः । अल्पायुषो भवत्येव कालदंदा हताः खलु ॥ ७ ॥ महापार कलां सां निंदा नैव विधीयते । तया चैनांसि वध्यते परत्र दुर्गतिं व्रजेत् ।। ७७ ॥ निदाफारी वध्वंसी परछिद्रप्रकाशकः । निद्राछेद्य'तरापो व चाण्डालाः पंच भाषिताः ॥ ७८ । धर्मस्थाने नरा नायर्यों निंदा कुर्वति ये रसात् । वल्गुलीकमार्जारस्खलज्जिहा 1- भवति ते ॥ ६ ॥ असारे खलु संसारे कस्य विल्लभो न कः । स्वार्थ एव परः पुरेसा न रामास्वजनादिकं ॥ ८० । एक एव सुखी मनुष्योंको भोजन करना चाहिये क्योंकि यही आगममें विधान है किन्तु जो मनुष्य उसके बाद भी | भोजन करते हैं वे मनुष्य नहीं किंतु मांस खालेले लोलगी नाक्षात हैं विशेष क्या जो मनुष्य प्रातःka काल दुपहर और सायंकाल तीनोंकाल भोजन करनेवाले हैं वे मनुष्य निर्धन होते हैं रोगी थोड़ी आयुवाले और यमराजके मुखमें प्रवेश करनेवाले होते हैं ॥ ७३–७६ ॥ सज्जनपुरुषोंकी | तो बात ही क्या है किंतु जो पुरुष घोर पाप करनेवाले महापापी हैं उनकी भी निंदा नहीं करनी चाहिये । क्योंकि उससे अनेक पाप कर्मोंका बंध होता है और पर भवमें दुर्गतिके अन्दर जाना पड़ता है ।। ७७ ॥ निंदा करनेवाले, व्रत ग्रहण कर उसे नष्ट करनेवाले, पराये दोषोंके प्रकाश करनेवाले, निद्रा छेदनेवाले और अंतराय (विघ्न ) पहचाने वाले ये पांच प्रकारके चांडाल माने जाते हैं ॥ ७८ ॥ जो मनुष्य वा स्त्रियां प्रेमपूर्वक धर्मके स्थानोंमें अर्थात् धर्मायतनोकी निंदा करनेवाले हैं-निंदा करनेमें आनंद माननेवाले हैं वे संसारमें उस निंदाके | - करनेसे वगली उल्लू और विल्ली होते हैं एवं उनकी जीभके खंड २ हो जाते हैं ॥ ७८-७६ ॥al C यह संसार असार है इसमें किसका कौन प्यारा नहीं है अर्थात् जो एक पुरुष किसीका द्वेषी होता | है वही दूसरेका प्यारा होता है वास्तवमें प्यारा स्वार्थ है जिसका जिससे स्वार्थ सटता है वही उस का प्यारा कहा जाता है स्त्री और कुटुम्ब आदि कोई किसीका प्यारा नहीं ॥८० ॥ इससंसारमें |* जो पुरुष पुण्य और पापका उपार्जन करने वाला है वही अकेला सुखी दुःखी और स्वर्गका सुख - Makar-KYThakra Ra Ratha
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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