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________________ सत्कु दुर्लभो धर्मोदयादानप्रवर्धितः ॥ ६७ ॥ धर्मेण प्राप्यते राज्यं स्वर्गः सत्व' सुखंयमः । सुपुत्रा क्सु सद्बुद्धी राम्रा पीन| पयोधराः ॥ ६८ ॥ विद्वत्वं चक्रवर्तित्वमार्यत्वं सुरनाथता | कानत्व' रूपसंपन्नं तीर्थकृत्त्वं यतो भवेत् ॥ ६६ ॥ ये नरा धर्मरिकास्तु ते भवति विबुद्धयः । विपुत्रा निर्धना मूकाः पराशाः स्त्रीविवर्जिताः ॥ ७० ॥ विरूपास्तस्करा नीचाः किंकरा मारपीडिता: । आउन्मव्यथिकाः कांता धर्मदीना भवन्ति ते ॥ ७१ ॥ स ब धर्मो द्विधा प्रोक्तो मुनिधावक भेदतः । मुनिधर्माद्भवेन्मोक्षश्चान्यस्मात्संपदादिकं ॥ ७२ ॥ नक्तभोज्यं न कर्तव्यं मांसदोषकरं सतां । निशादने कृते नूनं युतभंगो हि जायते ॥ ७३ ॥ पूजा स्नानं च दानं वा तर्पणं प्राप्त भी हो जाय तो उत्तम कुलका मिलना कठिन है यदि प्रबलभावसे उत्तम कुल भी प्राप्त हो जाय तो जिसमें दया और दान प्रधान है ऐसा उत्तम धर्म प्राप्त नहीं होता । धर्म संसार में चिंतामणि रत्न है क्योंकि धर्मसे राज्य प्राप्त होता है एवं धर्मसे हो स्वर्ग, बल, सुख, यश, उत्तमपुत्र धन | उत्तम बुद्धि पीन स्तनवालीं स्त्रियां विद्वत्ता चक्रवर्तीपना आर्यपना देवेंद्रपना इच्छानुसार भोग उत्तम रूप और तीर्थ करना भी प्राप्त होता है ॥ ६१-६६ ॥ जो मनुष्य धर्मका सेवन करनेवाले नहींधर्मरहित हैं वे बुद्धि रहित मूर्ख होते हैं। पुत्रहीन होते हैं निर्धन गूंगे अभागे और स्त्रियोंसे रहित होते हैं तथा उस परम पावन धर्मसे रहित पुरुष विरूप बदसूरत होते हैं चोर होते हैं. नीच किंकर रात दिन भार लादनेवाले जन्मपर्यन्त दुखी और अपमानित होते हैं ।। ७०-७१ ॥ जिस धर्मका यह फल बतलाया गया है वह धर्म मुनि और श्रावकके भेदसे दो प्रकारका बतलाया गया है उनमें मुनिधर्मसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और श्रावक धर्मकी कृपासे संसारकी अनेक विभूतियां आकर मिलतीं हैं ॥ ७२ ॥ रात्रिमें भोजन करनेसे अनेक जीवों का कलेवर भक्षण करना पड़ता और व्रतों का भी भले प्रकार पालन नहीं होता इसलिये वृतियों को कभी रात्रिमें भोजन नहीं करना चाहिये। रात्रिमें किये जानेवाले पूजा स्नान दान और तर्पण आदि भी किसी प्रकार की शुद्धिप्रदान नहीं कर सकते । पक्षीगण जिनके कि अंदर किसी प्रकारका धर्मज्ञान नहीं होता जब वे भी रात्रिमें नहीं खाते तब चर्य है मनुष्य क्यों रात्रिमें स्नाते हैं ? जब दो घड़ी दिन बाकी रह जाय तब 瑞 AAY पत्र
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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