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भवः ४२॥ आक्रमति हि मोन्याय लोका धर्मपरायणाः । नाकामति च तान् भूपो नीतिशास्त्रार्थ दक्षिण ॥४३॥ धर्मार्थकामशास्त्रा
णां वेतासौ काश्यपीपतिः । सर्वसामतसंसेव्यपादसत्कमला कलः ॥४४॥ तस्य राही महास्नेहा पद्मा पद्मविलोचना । बापामृदुकरा पनवक्षोजा पधिनीष नु॥ ४५ ललंती लीलया लोल लखनालालिता तनुः । इवोदपतिमो ज्योत्स्ना भोगांबोधिप्रवद्धिमी
६ मनया रमते राजा नामाकामकुमूहले। आश्लेष श्च धनरलेरासनेरौपरीपके ॥ ४॥ कामाकुला महादेवी सेवते तं निरंतिरस्कार ही सुन पड़ता था। यह नियम है कि जोलोग धर्मात्मा होते हैं वे न्याय मार्गका उल्लंसघन नहीं करते एवं जो मनुष्य नोति और शास्त्रमें कुशल होता है-धर्मात्मा होता है वह भी धर्मा-12
माओंको कभी पीड़ा नहीं देता। महापुर नगरमें राजा प्रजा दोनों धर्मात्मा थे इसलिये वहां कोई 1 उपद्रव न था ॥ ४२–४३ ॥ वह राजा पद्मसेन धर्म अर्थ और काम शास्त्रोंका परिपूर्ण जानकार
था । समस्त सामंत गण उसके चरण कमलोंकी बड़े प्रेमसे सेवा करते थे और वह महा मनोज्ञ Nथा ॥ ४४ ॥ राजा पद्मसेनकी रानीका नाम पद्मा था। रानी पद्मा अत्यंत स्नेह करने वाली थी RN कमलके समान नेत्रोंवालों थी। उसके दोनों हाथ कमलके समान कोमल थे। स्तनोंका खिलाव | भी कमल सरीखा था इसलिये वह साक्षात् पद्मिनी सरीखी थी ॥४५॥ वह रानी लीलापूर्वक चलने वाली थी। चंचल नेत्रोंकी धारक थी। सारा शरीर उसका अच्छी तरह लालित था। दुःखरूपी अंधकारको नाश करने वाली ज्योत्स्ना-चांदनी थी अतएव भोगरूपी समुद्रको बढ़ानेवाली थी। ॥ ४५-४६ ॥ इस रानी पद्माके साथ वह राजा पद्मसेन मनमानी रतिक्रीड़ा करता था कभी | वह उस रानीके साथ अनेक प्रकारके काम जनित कौतुहलोंको करता था कभी आलिंगन करता था कभी चुंबन करता तो कभी हास्पमिश्रित वचनोंका उपभोग करता था तथा भोग विलास करते है समय कभी कभी अनेक आसनोंको काममें लाता था ॥४७॥ वह रानी पद्मा भी अत्यंत कामिनी थप इसलिये वह भी बेधड़क हो सदा राजाके साथ विषयभोग भोगती थी। राजा पद्मसेन भी इतना
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