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________________ ЖҮЖКү% तरं । हातस्यादोऽपि राजा तो सेवते मोहतो ध्रु॥४८॥ पूरमल्लेव श्रीकृष्ण कपीशमंगलाग्रज | श्रीकृष्णोपी दुषत्रां तामिव कृष्णध राधिका ॥४६ (युग्म)सा रामा हावभावश्च प्रोल्लासमोगकंपनैः । मपितः स्खलितहास्यश्च पनै रंजयेद्धवं ॥५०॥ स कागी अगसंस्पर्शपेश्मन बने । तमनन्तवासस्तां लिंगास्यादेस्त्वतोपयत् ॥५६॥ एवं विषयसयोगे तयोगसीत्सुत परः । 2 पमनाभाइयः सर्वलक्षणांकितविग्रहः ॥ १२॥ भुजानो विविधान् भोगान् निमग्नः सुग्णसागरे। मत कालं न जानाति स्त्रीवादी अधिक रानी पद्मापर स्नेह रखता था कि सदा उसके साथ वह विषय भोगोंमें मग्न बना रहता था । एक क्षणके लिये भो उससे विमुख नहीं होना चाहता था। अन्धकार श्रीब्रह्मकृष्णदास भी अपने नामकी छाप लगाते हुए कहते हैं कि जिसप्रकार पूरमल्ला मंगलदासके बड़े भाई श्रीकृष्णदासके साथ सदा विषय भोगती थी एवं चंद्र वदनी उस पूरमल्खाको कृष्णदास भी एक क्षणकेलिये भी 12 नहीं छोड़ना चाहते थे तथा जिसप्रकार नवमें नारायण कृष्णकी स्त्री राधिका सदा कृप्सके साथ विषय भोगती थीं एवं कृष्ण भी क्षणभरके लिये भी उससे विमुख नहीं होना चाहते थे उसीप्रकार राजा पद्मसेन और रानी पद्माकी दशा थी दोनोंमें अधिक प्रेम होनेसे एक दूसरेको छोड़ना नहीं चाहता था ॥ ४८-४६ ॥ वह रानी पद्मा हाव भाव चित्तके उल्लास भोग समयमें कंपना भूषणोंके | शब्द अर्ध स्खलित वचन हास्य और शरीरकी कांतिसे सदा राजा पद्मसेनको प्रसन्न रखती तथा / कामाकुल वह राजा भो मर्दन, चुम्बन, आलिंगन और दंतच्छेदन आदि रतिकालीन क्रियाओंसे 21 सदा उस रानीको संतुष्ट रखता था। इसप्रकार मनमानी भोगक्रीड़ा करते करते उन दोनों दंपती । के पद्मनाभ नामका पुत्र हुआ जो कि समस्त राज लक्षणोंसे युक्त शरीरका धारक था ॥ ५०-५२॥12 वह राजा इच्छानुसार विषय भोगोंको भोगता भोगता सदा सुख सागरमें मग्न रहता था। समय कहां चला जा रहा है इस बातका उसे पता तक नहीं लगता था। ठीक ही है जो लोग स्त्रियोंकार 12 रस चख चुके हैं उनसे वह स्यद जल्दी नहीं छूटता ॥ ५३॥ . . TKPKRIPATYory kxkYKYKYжүжүжилт चकर
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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