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________________ मल० १०६ क्रियाः। खला निवाकृतो रूपा विद्यन्ते नैव हस्वकाः ॥ ३६॥ तत्रैवास्ति महीपालो हेलानिर्जितशात्रवः । पद्मसेनामिधो धीमान् । प्रतापानान्तभूतल ॥ ३७॥ धीमो गंभीर सत्वसन् नागदो सिंहविक्रमी। कमलापीनसत्स्कन्धः शास्त्रवान् धर्मवत्सलः ॥ ३८॥ रणोरलाही मियस्त्राता सौम्यः ऋरो यथायथ । दाता प्रियंवदःकामकीडामः कमलेक्षणः ॥ ३६॥ पाति तत्परमानन्दी षड्यगों चन्द्रसघशाः। इन्द्रो वा नागदेवश्च स्वर्गलोकरसातलं ॥४०॥ धृषस्कन्धो रणोत्साहो गूढसत्वं महोदमः । फर- सौभ्ये च दातृत्वं महाराजस्य लक्षणं ॥४१॥ राज्यं पालयति यस्मिन् भयं नो विद्यते क्वचित् । डने कुप्रवादश्च दुःखं नैव परा ЖЕЖҮЖүжүжұКүүкүркірек शाही अमीर हैं कोई छोटा नहीं ॥ ३६ ॥ उस महापुर नगरका स्वामी राजा पद्मसेन था जिसके लिये बलवान भी शत्रुओंका जीतना खेल सरीखा था। जो अत्यंत बुद्धिमान था। अपने प्रचंड Kा पराक्रमसे समस्त पृथ्वीतलको बश करने वाला था। धीर गंभीर बलवान और सज्जन था। नागके । समान उसकी दोनों भुजायें थीं। सिंहके समान जो पराक्रमी था। लक्ष्मीके समान स्थूल स्कंधों । का धारक था। शास्त्रोंका ज्ञाता, युद्ध करनेके लिये सदा उत्साही भयसे रक्षा करने वाला सौम्य । A समयानुसार क्रूर दाता प्रियवादी काम क्रीडाका जानकार कमलके समान प्रफुल्लित नेत्रोंका धारण : करनेवाला षड्वर्गी अर्थात् समयानुसार काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्यरूप छह वर्गोका धारण KA करने वाला और चंद्रमाके समान निर्मल यशका धारण करनेवाला था। तथा जिसप्रकार इन्द्र स्वर्गलोकको रक्षा करता है और नागदेव अधोलोकका पालन करने वाला है उसीप्रकार वह राजा पद्मसेन महापुरकी रक्षाका करनेवाला था। ॥ ३७-४०॥ बैलके समान उन्नत स्कंधोंका होना । 2 रणमें उत्साह रखना गुप्तरूपसे बलका धारण करना महान उद्योगी रहना क्रूर और सौम्यपना एवं ES दातापना ये महाराजके लक्षण हैं राजा पद्मसेन इन समस्त लक्षणोंका धारक था ॥४१॥ राजा 1121 पद्मसेनके राज्य पालन करते समय न तो कहीं भी किसी प्रकारका प्रजाको भय था। न दंडकी शंका थी। न किसीकी निंदा सुन पड़ती थी। न किसी प्रकारका दुःख था और न कहीं किसीका
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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