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________________ DI॥ ३० ॥ लसति वायुना यत्र पताका हदयंगमाः । आयंतीय भन्यानां सुराणां धर्महेतये ॥ ३१ ॥ यत्राभिषेकमहीभिः पटहैदु'दुभिः स्वनैः । गाननत्यः सुखालायर्योषितामुत्सयो महान् ।। ३२ ।। ललिता भोति यत्रैव कामलोलाः कजशः । कठिनोन्नत नितयाश्च पीनस्थूल पयोधराः ॥ ३३ ॥ गतागतस्तनोत्पीच ट्यत्कंचु कबंधनाः । हावभाषविलासश्च रंजयंति सुरानपि ॥ ३४॥ 5) पत्रैव दानिनो लोका वर्तते धनशालिनः । तपस्यति नराः पेचिद्धर्मार्थ शीलसंयुताः ।। ३५॥ तत्रैष निर्धना भूढा निर्विघेका गतपवनसे फर फराती गई महामनोहर पताकाएं अत्यत शोमा धारण करती हैं मानों भव्य देवोंको वे यह कह कर बुलाती हैं कि आओ भाई देवो। यहां आकर धर्म सेवन करो॥ ३१ ॥ इस महापुर|2 नगरमें सदा भगवान जिनेंद्रका अभिषेक हुआ करता है सदा पूजा हुआ करती है । पटह जाति । के बाजे और नगाड़े बजते रहते हैं । रमणियोंके गान नृत्य और प्रेमपूर्वक संभाषण होते रहते हैं इसलिये सदा अनेक प्रकारके उत्सवोंसे वह नगर जगमगाता बना रहता है ॥ ३२ ॥ महापुर का स्त्रियां उसकी विचित्र ही शोभा बढ़ाती हैं क्योंकि वे महा सुन्दरी होती हैं । अत्यंत कामिनी होती है । कमलके समान नेत्रवाली कठिन और उन्नत नितंबोंको धारक एवं पीन और स्थूल स्तनोंसे 2 शोभायमान रहती हैं। जिससमय बे आती जाती हैं उससमय आपसमें एक दूसरोंके स्तनोंके भिडावसे उनके चोलियोंके बंधन टूट जाते हैं एवं अपने हाव भाव और विलासोंसे देवोंक भी चित्तोंको हरण करती हैं ॥ ३३–३४ ॥ महापुर नगरके लोग धन पाकर उसे भोग विलासोंमें ही व्यय करने वाले नहीं हैं किंतु उत्तम आदि पात्रोंको भक्तिपूर्वक दान देनेवाले हैं इसलिये वहांके धनी परम दानी हैं तथा वहांक शीलवान भव्यजीव धर्मकी प्राप्तिकी अभिलाषासे सदा मुनिलिंग Kधारण कर उत्तम तप तपने वाले हैं ॥ ३५ ॥ उस नगरमें सब लोग धनी ही दीख पड़ते हैं कोई भी निर्धन नहीं दीख पड़ता। सब चतुर ही हैं मूढ नहीं। सब विवेकी ही हैं विवेक रहित नहीं । सब उद्योगी सजन और प्रशंसा करने वाले ही हैं आलसी दुष्ट और निंदा करनेवाले नहीं तथा सब पपपपपपपपलका
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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