________________
इति श्रीचिमलनाथपुराणे ब्राह्मष्णदासविरचितऽनुमान श्रीमंगलदास सारे सामान्य महाराजश्रीश्रेणिककृत प्रश्नो नाम प्रथमः सर्गः ॥१॥ इसप्रकार अपने छोटे भाई नलं श्रीमंगलदासको सहायतासे कृष्णदास द्वारा चिरचित श्रीविमलनाथ पुराणमें महाराज
श्रेणिक द्वारा किये गये प्रश्नका वर्णन करनेवाला पहिला सर्ग समाप्त हुआ।
दूसरा सर्ग।
पुराया पुरुषो जीयाज़गच्छास्ता शिवप्रदः । मोहांधकार मार्तडः कोटिसूर्याधिक प्रभः ॥ १॥ अथैधं भगवान दिव्यध्वनिक्षीरार्णवस्तदा । जगर्ज भगवद्धतापूर्णरात्रीशवंदितः ॥ २ ॥ मुख्यमततरंगात्मा दर्शनशानसेतुयान् । चारित्रभो भव:भंसी महाधन इवापरः ॥ ३॥
तीनों लोकके शासन करने वाले. जीवोंको कल्याणके कर्ता मोहरूपी अन्धकारके लिये सूर्य स्वरूप एवं करोड़ों सूर्योकी प्रभासे भी अधिक प्रभा धारण करनेवाले पुराण पुरुष भगवान तीर्थ कर ॥ सदा जयवंते रहें ॥ १॥ जिसप्रकार चंद्रमाके संबंधसे समुद्र उबलता और गर्जना है उस
प्रकार भगवानके मुखरूपी पूर्ण चंद्रमाके संबंधसे उनका दिव्य ध्वनिरूपी क्षीर समुद्र गज ने लगा
॥ २॥ वह दिव्य ध्वनि साचात् महामेघ सरीखी जान पड़ती थी क्यों कि जिसप्रकार मघ जलों I की नाना प्रकारको तरंग स्वरूप होता है उसीप्रकार वह दिव्य ध्वनि भी स्यादस्ति स्यान्नास्ति
आडि सप्त अंग वरूप थी अर्थात दिव्य ध्वनिसे जो भी उपदेश होता था वह सप्तभंगो वाणीके 9 अनुसार ही होता था.। महामेघ जिसप्रकार सेतु (पुल) विशिष्ट होता है अर्थात् नदी आदि स्थानों
को पार करने के लिये महामेघके समय खास कर पुलोंका उपयोग किया जाता है उसीप्रकार भगशन महावीरकी दिव्य ध्यान भी दर्शन ज्ञानरूपी सेतुसे युक्त थी अर्थात् सम्यग्दर्शन और सभ्य
पाप Patra
FRAPPERFkchrRETRY FARMER