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________________ - - शुराणा शीलतानां चक्रिणां प्रतिक्रिणां ॥५६॥रांग मनोजाना कयां कात्याणभाजनं । श्रोतुमिच्छति ते नव्या रागद्वेषपरामुखाः ॥५६८ ॥ अतः पृच्छाम्यहं देव! नानार्य स्वस्थ मतः मासम्मनपोशाला मुसाविति ५६ || श्रेणिको याचयित्वेति तूष्पीत्वं स्थितास्तदा । सपुत्र जिनीयुक्तः क्षाग्रिकोत्पन्नभावतः ॥ ६००॥ सुरनरपतिपूज्यं वर्धमान जिनेश सकलकलजनानां पापहंतारमेव । कनकनिषलकांति विपर भासमानमिहरविवनिलांत अंणिकायं नमामि ॥१॥ Karyakradhar Ras और उनके ज्ञानका कारण कहें तथा मुनिराज संजयंतके गणमें उन्हींके समान जो दो मुनिराज | हुए हैं उनका भी वृत्तांत प्रतिपादन करें क्योंकि हे भगवान् ! जो महानुभाव मुनि हैं। दानो हैं| | आपके समान ध्यानी हैं शीलवान शूरवोर हैं । चक्री ( चक्रवर्ती और नारायण ) प्रतिनारायण - चरम शरीरी और कामदेव हैं उनकी कथा कल्याणोंकी करनेवाली है जो महानुभाव इनको कथाको सुनना चाहते हैं वे भव्यजीव हैं और रागद्वषसे विमुख हैं ॥ ५६७–५६६ ॥ इसलिये हे देव ! हे सर्व जिनेंद्र ! मैंने अपने ज्ञानको वृद्धि के लिये और जितने भी आसन्न भव्यजीव हैं उन्हें बंद उपजाने के लिये भगवान विमलनाथ आदिके चारित्र पूछनेकी इच्छा प्रगटकी है। अस इसप्रकार अपनी जिज्ञासा प्रगट कर क्षायिक सम्यग्दृष्टि महाराज श्रेणिक अपने पुत्र और महारानी चेलिनी के साथ शांत होकर अपने स्थानपर बैठ गये ॥ ६००–६०१॥ या अन्धकार अंहसंगलकी कामना करते हुए कहते हैं कि जो बर्द्धमान भगवान सुरेंद्र और नरेंद्रों से पूजित है। कोंके जोतनेवाले महानुभायॉमें मुख्य हैं। समस्त प्राणिवोंके पापोंको नष्ट करने में पाले हे सुवर्ण सम्रान मनाहर प्रभा धारक है। सिंहासनपर देदीप्यमान है। अपनी उत्कट प्रभासे रविवनितासूर्यको प्रभाकी भी फीकी करनेवाले हैं और राजा श्रेणिककी प्रार्थनाको परो| करने वाले हैं उन श्रीबद्धमान खामाको मैं नमस्कार करता हूँ। YKY-RAKEY ARY
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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